मुंबई । पिछले कई हफ़्तों से महाराष्ट्र और पूरे भारत में भारी बारिश और बाढ़ की ख़बरों से मैं व्यथित हूँ। बाढ़ का तूफानी पानी सिर्फ तबाही मचाता है जल प्रलय लाता है लेकिन प्यासे लोगों की प्यास नहीं बुझा सकता है।मुंबई के पर्यावरण शोधकर्ता और पत्रकार डॉ. प्रशांत रेखा रवींद्र सिनकर ने राज्य के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस का ध्यान आकर्षित करते हुए एक गंभीर पत्र लिखा है कि प्रति वर्ष गर्मी की महामारी में ठाणे में पानी की कमी के चलते टैंकर से पानी प्रदाय सरकारी एवं निजी संस्थाओं के माध्यम से ठाणे शहर में किया जाता है।जबकि हर मानसून में लाखों लीटर पानी बहकर नालियों के माध्यम से व्यर्थ हो जाता है।
इतनी भारी बारिश और बाढ़ के बावजूद, हमारा महाराष्ट्र प्यासा है। भारी बारिश के कारण कई जगहों पर बाढ़ आती है, और उसी पानी का बहुमूल्य जीवन के लिए उचित उपयोग नहीं हो पाता। शहरों की सड़कें, नाले, नदियाँ इस पानी को समुद्र की ओर ले जाती हैं; इसमें हज़ारों लीटर पानी बर्बाद हो जाता है, जबकि कुछ गाँवों के लोग प्यासे रहते हैं।
सूखे कुओं की ओर दौड़ते किसान, पानी की एक घूँट के लिए स्कूल छोड़कर जाते बच्चे और गर्मियों में प्यासे जानवर, ये सब देखकर हमारा दिल छू जाता है और हमें अपनी ज़िम्मेदारी का एहसास होता है। हमारे पूर्वजों ने तालाब, कुएँ और बाँध बनाकर वर्षा जल बचाया था। राजस्थान में चांद बावली और तमिलनाडु में कल्लनई बाँध के उदाहरण हमें सिखाते हैं कि जल संग्रहण जीवन रक्षक कार्य है।
सुझाए गए समाधान
1. बाढ़ के पानी का पुनर्वितरण:
डॉ प्रशांत ने मुख्य मंत्री देवेंद्र फडणवीस को दिए पत्र में कुछ सुझाव दिए है जिनमें राज्य के ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में ऊँचाई वाली नदियों और नालों का मार्ग मोड़ना और जहाँ जल की कमी है, वहाँ सुरंगों या नहरों का निर्माण किया जाना चाहिए।
छोटे बाँधों, वाल्व प्रणालियों और तालाबों का उपयोग करके बाढ़ के पानी का संग्रहण करना।
2. शहरी और ग्रामीण जल संग्रहण:
स्कूलों, अस्पतालों, सोसायटियों और सरकारी भवनों में वर्षा जल संचयन अनिवार्य बनाना।
खेत के तालाबों, पोखरों और नालों की सफाई; खेतों में जल संचयन करके भूजल स्तर बढ़ाना।
3. स्मार्ट जल प्रबंधन:
उपग्रहों और ड्रोन का उपयोग करके यह मापना कि बाढ़ का पानी कहाँ और कितना जाना चाहिए और जल की कमी वाले क्षेत्रों में जल संसाधनों का पुनर्वितरण करना।
4. जन जागरूकता:
बच्चों से लेकर बड़ों तक को जल संरक्षण और वर्षा जल संचयन का प्रशिक्षण देना।
नागरिकों में वर्षा जल बचाने की संस्कृति का संचार करना।
हमने राज्य के मुख्यमंत्री को भावनात्मक रूप से यह व्यक्त करने की कोशिश की है कि पानी की एक-एक बूँद हज़ारों ज़िंदगियों के बराबर है। अगर हम आज बाढ़ के पानी को सही जगह मोड़ने और जमा करने के लिए ठोस कदम उठाएँ, तो भविष्य में महाराष्ट्र का हर गाँव, शहर, खेत और घर प्यासा नहीं रहेगा। पानी बचाने का मतलब है ज़िंदगियाँ बचाना। आपके नेतृत्व में इस कार्य को लागू करने में हमें पूरा सहयोग मिलेगा।
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