राजस्थान हाईकोर्ट, जोधपुर की डिवीजन बेंच ने एक महत्वपूर्ण फैसले में हत्या के मामले में 10 साल 9 माह से अधिक समय तक सजा काट रहे आरोपी को राहत प्रदान की है। जस्टिस फरजंद अली और जस्टिस अनुरूप सिंघी की खंडपीठ ने 28 जुलाई 2025 को सुनाए गए अपने निर्णय में कहा कि अब तक काटी गई सजा न्याय के उद्देश्य को पूरा करने के लिए पर्याप्त है। कोर्ट ने आरोपी को यह भी आदेश दिया कि यदि वह किसी अन्य मामले में आवश्यक नहीं है, तो उसे रिहा किया जा सकता है।
अदालत ने अपने निर्णय में स्पष्ट किया कि आरोपी ने जेल में रहते हुए समयानुसार सुधारात्मक व्यवहार दिखाया है और उसका रिहाई के लिए आवेदन न्यायसंगत है। न्यायालय ने यह भी कहा कि आरोपी की रिहाई का उद्देश्य समाज में न्याय के सिद्धांत को बनाए रखना है और इसे किसी भी तरह से अपराध को बढ़ावा देने वाला कदम नहीं माना जाना चाहिए।
कानूनी विशेषज्ञों के अनुसार, यह फैसला न्यायपालिका के सुधारात्मक दृष्टिकोण का उदाहरण है। उन्होंने बताया कि ऐसे मामले दर्शाते हैं कि अदालतें केवल सजा देने पर ध्यान नहीं देतीं, बल्कि जेल में सुधार, समयानुसार व्यवहार और अपराध के सामाजिक प्रभाव को भी ध्यान में रखती हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि राजस्थान हाईकोर्ट का यह निर्णय न्याय और मानवाधिकारों के बीच संतुलन स्थापित करने का प्रयास है।
आरोपी के परिवार ने अदालत के फैसले का स्वागत किया है। परिवार के सदस्यों ने कहा कि यह निर्णय उनके लिए राहत और उम्मीद लेकर आया है। वहीं, समाज में इस फैसले को लेकर मिश्रित प्रतिक्रियाएँ भी सामने आई हैं। कुछ लोग इसे सकारात्मक कदम मानते हैं, क्योंकि इससे सुधार और पुनर्वास की संभावना बढ़ती है, जबकि कुछ लोग कानून की कठोरता पर प्रश्न उठा रहे हैं।
हाईकोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि हत्या जैसे गंभीर अपराध में सजा कम करने का निर्णय केवल आरोपी के जेल में सुधार और उसके व्यवहार पर आधारित होता है। अदालत ने आदेश दिया है कि आरोपी की रिहाई से पहले सभी कानूनी प्रक्रियाओं का पालन सुनिश्चित किया जाएगा ताकि समाज की सुरक्षा प्रभावित न हो।
विशेषज्ञों का कहना है कि इस फैसले से यह संदेश जाता है कि न्यायपालिका समय-समय पर दोषियों के सुधार को ध्यान में रखते हुए संतुलित निर्णय लेने में सक्षम है। इससे न्याय और मानवाधिकार के सिद्धांतों को सुदृढ़ करने में मदद मिलती है।
राजस्थान हाईकोर्ट, जोधपुर का यह फैसला न्याय के सिद्धांत और सुधारात्मक दृष्टिकोण का प्रतीक माना जा रहा है। अदालत ने यह संदेश दिया है कि यदि आरोपी ने जेल में रहते हुए सुधार दिखाया है और अब तक की सजा न्याय के उद्देश्य को पूरा कर चुकी है, तो उसे उचित समय पर रिहा किया जा सकता है।
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