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कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष डोटासरा के बयान पर सियासी घमासान, वीडियो में जानें ओमप्रकाश भड़ाना का पलटवार "टीआरपी बढ़ाने के लिए अनर्गल बातें करते हैं"

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राजस्थान की राजनीति एक बार फिर गरमा गई है। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा के बयानों को लेकर अब सत्ता पक्ष और विपक्ष आमने-सामने आ गए हैं। डोटासरा पर आरोप लगाया गया है कि वह राजनीतिक मुद्दों पर गंभीर बहस करने के बजाय केवल टीआरपी बढ़ाने और सुर्खियां बटोरने के लिए मीडिया प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल कर रहे हैं। इसको लेकर देवनारायण बोर्ड के अध्यक्ष ओमप्रकाश भड़ाना ने उन पर तीखा पलटवार किया है।

“अनर्गल बयानबाजी राजनीतिक शुचिता के खिलाफ”

ओमप्रकाश भड़ाना ने मंगलवार को मीडिया से बातचीत में कहा कि गोविंद सिंह डोटासरा लगातार ऐसे बयान दे रहे हैं जो लोकतांत्रिक और राजनीतिक शुचिता के बिल्कुल विपरीत हैं। उन्होंने कहा –
“एक संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति के बारे में इस तरह की अनर्गल बातें करना उचित नहीं है। इससे राजनीतिक माहौल खराब होता है और जनता के बीच गलत संदेश जाता है।”

“खिसियानी बिल्ली खंबा नोचे”

डोटासरा की आलोचना करते हुए भड़ाना ने कहावत का सहारा लिया। उन्होंने कहा –
“खिसियानी बिल्ली खंबा नोचे। जब किसी के हाथ में कुछ ठोस मुद्दा नहीं होता, तो वे इसी तरह की बातें करके खुद को प्रासंगिक दिखाने की कोशिश करते हैं। जनता सब समझ रही है और समय आने पर जवाब भी देगी।”

टीआरपी बढ़ाने का आरोप

भड़ाना का कहना था कि डोटासरा का मकसद केवल मीडिया की सुर्खियों में बने रहना है। गंभीर राजनीतिक विमर्श करने के बजाय वह ऐसे बयान देते हैं, जो विवाद को जन्म दें और टीवी डिबेट्स में उन्हें केंद्र में ला दें। उन्होंने यह भी कहा कि विपक्ष की भूमिका सरकार की नीतियों की आलोचना करना और रचनात्मक सुझाव देना होती है, लेकिन डोटासरा उस जिम्मेदारी को पूरा करने में नाकाम साबित हो रहे हैं।

राजनीतिक टकराव तेज

राज्य की राजनीति में डोटासरा और सत्ता पक्ष के नेताओं के बीच लंबे समय से बयानबाजी का दौर चलता आ रहा है। लेकिन हाल के दिनों में यह और तेज हो गया है। डोटासरा जहां सरकार पर लगातार हमलावर रहते हैं, वहीं सरकार से जुड़े नेता उन्हें गैर-जिम्मेदार और अवसरवादी करार देते हैं। ताजा बयानबाजी ने इस टकराव को और गहरा कर दिया है।

जनता के बीच क्या संदेश?

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस तरह की बयानबाजी से आम जनता में गलत संदेश जाता है। जहां जनता रोजगार, शिक्षा, महंगाई और विकास जैसे मुद्दों पर चर्चा चाहती है, वहीं राजनीतिक दल नेताओं की व्यक्तिगत बयानबाजी और एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप में उलझे रहते हैं। इससे राजनीतिक नेतृत्व की गंभीरता पर सवाल खड़े होते हैं।

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