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पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर में हड़ताल के दौरान इंटरनेट और मोबाइल सेवाएं रहीं बंद, ये है वजह

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image Getty Images मंगलवार को हड़ताल के दौरान घायल एक प्रदर्शनकारी

पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर में व्यापारियों और आम लोगों के संगठन 'जम्मू कश्मीर जॉइंट आवामी एक्शन कमेटी' के आह्वान पर 29 सितंबर को हड़ताल बुलाई गई थी.

विरोध प्रदर्शनों से निपटने के लिए अधिकारियों ने कई इलाक़ों में लैंडलाइन और मोबाइल फ़ोन, इंटरनेट और सोशल मीडिया पर आंशिक तौर पर पाबंदी लगा दी.

हड़ताल का आह्वान करने वालों का कहना है कि ये आंदोलन दो साल पहले शुरू हुआ था. लोगों की मांग है कि आटे और बिजली की कमी को पूरा किया जाए.

अब इसमें असेंबली की विशेष सीटों को ख़त्म करने के अलावा मुफ़्त शिक्षा और स्वास्थ्य की सुविधा जैसी कुछ मांगें भी शामिल की गई हैं.

एक्शन कमेटी का आरोप है कि इस बार प्रदर्शन इसलिए किया जा रहा है क्योंकि सरकार दो साल पहले हुए समझौते पर पूरी तरह अमल नहीं कर सकी.

हड़ताल की अपील से पहले पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर की सरकार ने एक वार्ता टीम बनाई थी और केंद्र से प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ के प्रतिनिधियों ने भी जॉइंट एक्शन कमेटी के सदस्यों से बातचीत की थी. हालांकि यह वार्ता असफल रही.

इसके बाद दोनों पक्षों ने एक-दूसरे पर इस मामले में प्रगति न होने का आरोप लगाया. अब सरकार और एक्शन कमेटी दोनों का कहना है कि वे बातचीत के ज़रिए समस्याओं का हल चाहते हैं. सरकारी अस्पतालों और रिज़र्व पुलिस फोर्स की सभी छुट्टियां रद्द कर दी गई हैं, जबकि पाकिस्तान से अतिरिक्त सुरक्षा बलों को कश्मीर भेजा गया है.

कई स्कूलों को बंद कर उन्हें अधिकारियों के अस्थायी आवास में बदल दिया गया है.

पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर के गृह मंत्री वकार नूर ने बीबीसी से कहा, "कश्मीर की पुलिस बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शनों और किसी संभावित तनाव से निपटने की क्षमता नहीं रखती, इसलिए केंद्र से अतिरिक्त बलों को बुलाया गया है."

प्रदर्शनकारियों की मांगें क्या हैं? image Shaukat Nawaz Mir अवामी एक्शन कमेटी के शौकत नवाज मीर का कहना है कि मंत्रियों की संख्या कम की जानी चाहिए

जम्मू कश्मीर जॉइंट अवामी एक्शन कमेटी की तरफ से 38 बिंदुओं वाले चार्टर ऑफ डिमांड में कई मांगें रखी गई हैं. इनमें सरकारी खर्चों में कमी, मुफ्त शिक्षा, मुफ़्त इलाज, और हवाई अड्डे का निर्माण जैसी कई विकास योजनाएं शामिल हैं.

नई मांगों में सबसे ऊपर सरकार में शामिल लोगों को मिली छूट खत्म करने की बात है.

जॉइंट एक्शन कमेटी के मुताबिक, सरकारी प्रतिनिधियों ने माना था कि शीर्ष अधिकारियों और नेताओं को मिलने वाली विशेष छूट की समीक्षा के लिए न्यायिक आयोग बनाया जाएगा. लेकिन पंद्रह महीने बीत जाने के बाद भी सरकार ने कोई कदम नहीं उठाया.

यह भी मांग की गई है कि मंत्रियों की संख्या घटाई जाए ताकि सरकारी खजाने पर बोझ कम हो.

असेंबली सीटों से जुड़ी मांग image Getty Images पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर में प्रदर्शन करते हुए लोग (फ़ाइल फ़ोटो)

जॉइंट एक्शन कमेटी का आरोप है कि शरणार्थियों के नाम पर पाकिस्तान में बने 12 चुनाव क्षेत्र स्थानीय संसाधनों की बर्बादी में बड़ी भूमिका निभाते हैं.

एक्शन कमेटी की यह भी मांग है कि सन 1947 से अब तक भारत प्रशासित कश्मीर से पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर में आए लोगों को स्थायी रूप से बसाकर उन्हें मालिकाना अधिकार दिए जाएं.

फ़िलहाल ये लोग शरणार्थी की श्रेणी में ही आते हैं.

जॉइंट एक्शन कमेटी का कहना है कि 8 दिसंबर 2024 को उसके और सरकार के बीच हुए लिखित समझौते में यह तय हुआ था कि 90 दिनों के अंदर पहले दर्ज किए गए सभी मुक़दमे ख़त्म किए जाएंगे लेकिन अब तक मुक़दमे वापस नहीं लिए गए.

उनका आरोप है कि उन्हीं मुक़दमों को आधार बनाकर कई क्षेत्रों में कैरेक्टर सर्टिफ़िकेट जारी करने में रुकावट डाली जा रही है. जॉइंट एक्शन कमेटी का यह भी कहना है कि पाकिस्तान रेंजर्स को तैनात करना राज्य पर बाहरी हमला माना जाएगा.

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इंटरनेशनल एयरपोर्ट की मांग

जॉइंट एक्शन कमेटी ने कहा है कि राज्य में अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे बनाए जाएँ और मीरपुर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे की घोषणा को अमली जामा पहनाया जाए.

कमेटी ने यह भी मांग की है कि पाकिस्तान में सन 1947 से रहने वाले 'कश्मीरी मुहाजिरों' के लिए सरकारी नौकरियों में दिया गया कोटा खत्म किया जाए.

जॉइंट एक्शन कमेटी ने सस्ते आटे की आपूर्ति को भी मुद्दा बनाया. उनका दावा है कि समझौते के तहत लाया गया गेहूं खराब था और यह लोगों की जान के लिए खतरा है.

इसके अलावा, कमेटी ने कहा है कि पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर में सभी ग्रिड स्टेशनों का प्रबंधन और संचालन स्थानीय सरकार को सौंपा जाना चाहिए.

मांगों पर बातचीत क्यों नाकाम हुई? image Getty Images फ़ैजल राठौर का कहना है कि यह विरोध कमर्शियल बिजली के दामों में बढ़ोतरी को लेकर शुरू हुआ

कमेटी का आरोप है कि सरकार के साथ हाल की बातचीत में बार-बार वक़्त देने के बावजूद उनकी मांगों पर कोई प्रगति नहीं हुई.

8 दिसंबर 2024 को हुए शुरुआती समझौते के बाद न तो स्थानीय सरकार और न ही पाकिस्तान की सरकार ने उनके प्रतिनिधियों से संपर्क किया.

पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर के गृह मंत्री वक़ार नूर ने कहा कि सरकार हमेशा बातचीत के लिए तैयार है. उन्होंने कहा कि सीटों और रियायतों जैसी मांगें रातोंरात पूरी नहीं की जा सकतीं क्योंकि उनके लिए क़ानून बनाना ज़रूरी है.

उनका कहना है, "सीटों और रियायतों को ख़त्म करने जैसी मांगें रातोंरात पूरी नहीं हो सकतीं क्योंकि उन पर क़ानून बनाना ज़रूरी होगा. यह बात उन्हें तार्किक ढंग से समझने की ज़रूरत है."

सरकार की वार्ता कमेटी के प्रमुख फ़ैसल मुमताज़ राठौर ने कहा कि वे लगातार कमेटी के संपर्क में रहे और अधिकांश मुद्दों का निपटारा हो चुका है, केवल बिजली दरों पर व्यापारियों के विरोध से गतिरोध है.

पाकिस्तानी सेना पर क्यों है आपत्ति image RIZWAN TABASSUM/AFP via Getty Images पाकिस्तानी फ़ौज का एक कमांडो (फ़ाइल फ़ोटो)

शौक़त नवाज़ मीर ने विरोध प्रदर्शन से पहले बाहरी पुलिस और रेंजर्स को बुलाए जाने पर नाराज़गी जताई. उनका कहना है कि स्थानीय पुलिस मौजूद है और अवाम के ख़िलाफ़ बाहरी बलों का इस्तेमाल ग़लत होगा.

शौक़त नवाज़ मीर ने कहा, "हमें भारतीय एजेंट कहा जा रहा है. हम पाकिस्तान और उसकी फ़ौजों के ख़िलाफ़ बिल्कुल नहीं हैं, लेकिन इस तरह अवाम के ख़िलाफ़ उनका इस्तेमाल ग़लत होगा."

गृह मंत्री वक़ार नूर ने इसका जवाब देते हुए कहा कि केंद्र से आने वाली 'फोर्सेज' आपदा और संभावित अशांति से निपटने में मदद करती हैं.

विरोध प्रदर्शन लगभग दो साल पहले शुरू हुए थे, जब रावलाकोट में कथित आटा तस्करी का मामला सामने आया था. इसके बाद बिजली के बिलों में बढ़ोतरी भी एक बड़ा मुद्दा बन गई.

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