
दो दिनों के भीतर सीपीआई माओवादी की सेंट्रल कमेटी के एक सदस्य मोडेम बालकृष्णा के मारे जाने और सेंट्रल कमेटी की ही दूसरी सदस्य सुजाता के आत्मसमर्पण के बाद माना जा रहा है कि माओवादी संगठन अपने सबसे मुश्किल दौर से गुज़र रहा है.
सरकारी दस्तावेज़ों पर भरोसा करें तो कभी 42 सदस्यों वाली सीपीआई माओवादी की सेंट्रल कमेटी में, अब केवल 13 सदस्य बचे हैं.
छत्तीसगढ़ के गृहमंत्री विजय शर्मा ने कहा, "सेंट्रल कमेटी की सदस्य सुजाता के आत्मसमर्पण के बाद, छत्तीसगढ़ में सक्रिय माओवादियों की सेंट्रल कमेटी में अब कुछ ही सदस्य बचे हैं. कुल मिला कर इनका शीर्ष नेतृत्व समापन की ओर है."
केंद्र सरकार ने 31 मार्च 2026 तक देश से माओवादियों को पूरी तरह से खत्म करने की समय सीमा तय कर रखी है. यही कारण है कि पिछले 20 महीनों से छत्तीसगढ़ में सुरक्षाबलों ने माओवादियों के ख़िलाफ़ सघन अभियान चलाया हुआ है.
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छत्तीसगढ़ अलग राज्य बनने के बाद से पिछले 25 सालों में माओवादियों के ख़िलाफ़ सुरक्षाबलों का यह सबसे बड़ा अभियान है. इसमें बड़ी संख्या में माओवादी मारे गए हैं, गिरफ़्तार किए गए हैं या उन्होंने आत्मसमर्पण किया है.
लेकिन गुरुवार-शुक्रवार को एक मुठभेड़ में सेंट्रल कमेटी के सदस्य मोडेम बालकृष्णा के मारे जाने की ख़बर की चर्चा हो ही रही थी, कि शनिवार को सेंट्रल कमेटी की एक और सदस्य सुजाता के तेलंगाना में आत्मसमर्पण की ख़बर सामने आ गई.
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2004 में जब पीपल्स वॉर ग्रुप और एमसीसी का विलय हुआ और सीपीआई माओवादी का गठन हुआ, तब इस संगठन की सेंट्रल कमेटी में 42 सदस्य थे.
लेकिन सरकारी दस्तावेज़ों की मानें तो आज की तारीख में इस कमेटी में केवल 13 माओवादी बचे हैं.
अकेले इस साल अब तक सेंट्रल कमेटी के 6 सदस्य मारे जा चुके हैं. इसी साल जनवरी में रामचंद्र रेड्डी उर्फ चलपति, मई में पुल्लुरी प्रसाद राव ऊर्फ चंद्रन्ना, मई में ही पार्टी के महासचिव नंबाला केशव राव, जून में सुधाकर और गजराला रवि ऊर्फ उदय मारे गए.
मोडेम बालकृष्णा की मौत के साथ इस साल मारे जाने वाले लोगों की संख्या बढ़ कर छह हो गई. सेंट्रल कमेटी में अब 13 लोग बचे हैं.
इनमें से 8 आंध्र प्रदेश-तेलंगाना से हैं, जिनमें मुपल्ला लक्ष्मण राव ऊर्फ गणपति, मल्लोजुल्ला वेणुगोपाल ऊर्फ सोनू, तिप्पिरी तिरूपति ऊर्फ देवजी, पसुनुरी नरहरि ऊर्फ विश्वनाथ, कादरी सत्यनारायण रेड्डी ऊर्फ कोसा, मल्ला राजिरेड्डी ऊर्फ संग्राम, पाका हनुमंथु ऊर्फ गणेश और कट्टा रामचंद्र ऊर्फ राजूदादा शामिल हैं.
इस कमेटी में झारखंड से तीन सदस्य मिसिर बेसरा ऊर्फ सुनील, अनल दा उर्फ पथिराम मांझी और सहदेव ऊर्फ अनुज शामिल हैं. सीपीआई माओवादी की सेंट्रल कमेटी में छत्तीसगढ़ के दो माओवादियों मज्जीदेव ऊर्फ रामधीर और माड़वी हिड़मा को रखा गया है.
पुलिस के एक अधिकारी ने बीबीसी से कहा, "बस्तर में माओवादी संगठन अपने अंतिम दौर में है. सुजाता का आत्मसमर्पण इसका उदाहरण है. झारखंड, तेलंगाना और आंध्र में संगठन नाम भर के लिए बचा है और मोडेम बालकृष्णा के मारे जाने के बाद अब ओडिशा में भी यही स्थिति है."

छत्तीसगढ़ के गरियाबंद में सीपीआई माओवादी की सेंट्रल कमेटी के सदस्य मोडेम बालकृष्णा के मारे जाने को पुलिस अपनी बड़ी उपलब्धि मान कर चल रही है.
मोडेम बालकृष्णा के मारे जाने के बाद अब माना जा रहा है कि ओडिशा में माओवादियों की कंधमाल-कालाहांडी-बौद्ध-नवागढ़ कमेटी का पूरी तरह से सफाया हो चुका है.
वारंगल ज़िले के मडीकोंडा के रहने वाले लगभग 60 साल के मोडेम बालकृष्णा को बालन्ना, मनोज, भास्कर और रामचंद्र समेत कई नामों से जाना जाता था.
1983 में माओवादी संगठन में शामिल होने वाले बालकृष्णा को, 1987 में महबूबनगर में गिरफ़्तार किया गया था.
1990 में पीपल्स वॉर ग्रुप ने तेलुगुदेशम पार्टी के विधायक मंडावा वेंकटेश्वर राव का जब अपहरण किया तो उन्होंने राव की रिहाई के बदले अपने कई साथियों को जेलों से रिहा करने की शर्त रखी.
विधायक मंडावा वेंकटेश्वर राव के बदले जिन नक्सलियों को रिहा किया गया, उसमें बालकृष्णा भी शामिल थे.
माओवादी संगठन में मोडेम बालकृष्णा की पिछले चार दशकों से भी अधिक समय से सक्रियता थी.
माओवादी संगठन की सेंट्रल रीजनल ब्यूरो का अहम सदस्य होने के अलावा ओडिशा राज्य समिति के साथ-साथ केकेबीएन डिवीजन यानी कंधमाल, कालाहांडी, बौद्ध, नयागढ़ डिवीजन का प्रभार भी बालकृष्णा के पास ही था.
बालकृष्णा की अगुवाई में केकेबीएन डिवीजन ओडिशा–छत्तीसगढ़ सीमा पर लंबे समय तक सक्रिय रही.
पिछले कुछ वर्षों में बालकृष्णा की सेहत को लेकर खबरें आईं कि वह गंभीर रूप से अस्वस्थ हैं, लेकिन बालकृष्णा सुरक्षाबलों के निशाने पर बने रहे.
इस साल जनवरी में सुरक्षा बलों ने मोडेम बालकृष्णा की तलाश को प्राथमिकता बनाते हुए कई बड़े अभियान चलाए. लेकिन अब पुलिस को सफलता मिली है.
सुरक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि बालकृष्ण का मारा जाना माओवादी संगठन के लिए बड़ा झटका है. केकेबीएन डिवीजन, जिसे लंबे समय तक ओडिशा–छत्तीसगढ़ सीमा पर माओवादी गतिविधियों का मज़बूत गढ़ माना जाता था, अब बिना नेतृत्व के बिखर सकता है.
अब सुजाता को लेकर भी कहा जा रहा है कि उनकी रिहाई के बाद संगठन में महिला कैडरों में बिखराव आ सकता है.
पोथुला पद्मावती ऊर्फ सुजाता ने शनिवार को तेलंगाना पुलिस मुख्यालय में आत्मसमर्पण किया.
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करीब 43 साल तक अंडरग्राउंड रहने वालीं और चार दशकों तक सत्ता को बंदूक से चुनौती देने वाली 62 वर्षीय पोथुला पद्मावती ऊर्फ सुजाता सीपीआई माओवादी की सेंट्रल कमेटी की सदस्य भी थीं और माओवादियों की जनताना सरकार की प्रमुख भी.
आंध्र प्रदेश के जोगुलंबा गडवाल ज़िले के पेंचिकलपाडु गाँव में जन्मीं सुजाता एक किसान और पोस्टमास्टर पिता तथा गृहिणी माँ की बेटी थीं.
बचपन सामान्य था, लेकिन कॉलेज के दिनों में वामपंथी विचारधारा से प्रभावित होकर 1982 में उन्होंने अंडरग्राउंड रहकर राजनीति करने की राह चुन ली.
1988-89 में वह एतापल्ली दालम की डिप्टी कमांडर बनीं, 1996 में देवुरी दालम की कमांडर, 1997 से 1999 तक दक्षिण बस्तर की जिम्मेदारी संभाली,.
वह 2001 में दंडकारण्य विशेष ज़ोनल समिति में पहुँचीं और 2007 में जनताना सरकार की प्रमुख बनीं, जिसे माओवादियों की समानांतर सरकार कहा जाता है.
1984 में उनकी मुलाकात माओवादी आंदोलन के शीर्ष नेता मल्लोजुला कोटेश्वर राव ऊर्फ किशनजी से हुई . दोनों ने विवाह किया और साथ मिलकर आंदोलन को नई दिशा दी.
लेकिन 2011 में पश्चिम बंगाल के जंगलमहल में सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ में किशनजी मारे गए.
पति की मौत, भूमिगत जीवन और बेटी की चिंता ने सुजाता को कमज़ोर किया. बीमारियाँ और बढ़ती उम्र भी साथ छोड़ने लगीं.
2025 की गर्मियों में उन्होंने संगठन को पत्र लिखकर आत्मसमर्पण की इजाज़त मांगी और शनिवार को आत्मसमर्पण के साथ, उन्होंने माओवाद को हमेशा-हमेशा के लिए विदा कह दिया.
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