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प्रोफ़ेसर बृज नारायण: पाकिस्तान बनाने के कट्टर समर्थक, जिनकी भीड़ ने लाहौर में हत्या कर दी थी

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Govt M.A.O College Lahore/FACEBOOK लाहौर में एमएओ कॉलेज, जहाँ विभाजन से पहले सनातन धर्म कॉलेज स्थित था. प्रोफ़ेसर नारायण इसी कॉलेज में अर्थशास्त्र पढ़ाते थे

बृज नारायण पाकिस्तान के समर्थक थे, उन्हें यहीं रहना था. इसलिए जब 1947 में भारत की आज़ादी और विभाजन की घोषणा के बाद दंगे भड़के, तो लाहौर के अर्थशास्त्री बृज नारायण निकोलसन रोड स्थित अपने घर से बाहर निकले और दंगाइयों को समझाने लगे कि दुकानों और घरों में आग न लगाएँ क्योंकि 'यह अब पाकिस्तान की संपत्ति है.'

लाहौर के रहने वाले प्रोफ़ेसर बृज नारायण औपनिवेशिक पंजाब की कृषि अर्थव्यवस्था पर अपने अध्ययन के लिए मशहूर थे. उनका जन्म 1888 में हुआ था और वे भारत के विभाजन से पहले लाहौर के सनातन धर्म कॉलेज (बाद में एमएओ कॉलेज) में अर्थशास्त्र के प्रोफ़ेसर थे. उन्हें पंजाब विश्वविद्यालय की तरफ़ से अर्थशास्त्र का मानद प्रोफ़ेसर भी नियुक्त किया गया था.

डॉ. जी आर मदान अपनी पुस्तक 'इकोनॉमिक थिंकिंग इन इंडिया' में लिखते हैं कि उपमहाद्वीप के विभाजन से पहले, प्रोफ़ेसर बृज नारायण को '20वीं सदी के अग्रणी अर्थशास्त्रियों में से एक माना जाता था.'

वे पश्चिमी देशों के कुछ विश्वविद्यालयों में आर्थिक समस्याओं पर व्याख्यान देते थे और इसी विषय पर उन्होंने 15 से ज़्यादा किताबें लिखी थीं. उनके लेख विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में भी प्रकाशित हुए थे.

लेकिन जिन्ना की 'टू नेशन थ्योरी' का समर्थन और गांधीजी का विरोध भी उनकी लोकप्रियता का एक कारण था. डॉ जी आर मदान लिखते हैं कि प्रोफ़ेसर नारायण ने 'गांधीजी के 'चरखा अर्थशास्त्र' का खुलकर विरोध किया.'

चरखा अर्थशास्त्र, महात्मा गांधी से जुड़ी वह विचारधारा है जो स्वदेशी, आत्मनिर्भरता, और ग्रामीण भारत के आर्थिक सशक्तिकरण पर केंद्रित है.

पाकिस्तान के निर्माण के 'प्रबल समर्थक'

पत्रकार, लेखक और कवि गोपाल मित्तल ने अपनी पुस्तक 'लाहौर के बारे में क्या कहा गया' में बताया है कि जहां अधिकांश अर्थशास्त्री कहते थे कि पाकिस्तान कभी भी आर्थिक रूप से स्थिर नहीं हो पाएगा और इसका अस्तित्व बहुत अस्थिर है, वहीं प्रोफ़ेसर बृज नारायण ने इस नज़रिये का समर्थन करते हुए कई लेख लिखे कि पाकिस्तान आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनने में सक्षम होगा.

अपनी पुस्तक 'द पंजाब बिल्ट, पार्टीशन्ड एंड क्लीन्स्ड: अनरेवलिंग द 1947 ट्रेजडी थ्रू सीक्रेट ब्रिटिश रिपोर्ट्स एंड फर्स्ट-पर्सन अकाउंट्स' में, पाकिस्तानी मूल के स्वीडिश रिसर्चर इश्तियाक अहमद ने 1999 में दिल्ली में सोम आनंद की इन टिप्पणियों का जिक्र किया है: 'प्रोफ़ेसर बृज नारायण ने पाकिस्तान की मांग का बचाव किया और एक व्यापक और तर्क दिया कि पाकिस्तान एक प्रेक्टिकल स्टेट होगा.'

image Getty Images भारत के विभाजन के दौरान, करीब एक करोड़ 20 लाख लोग शरण की तलाश में एक स्थान से दूसरे स्थान पर पलायन कर गए.

पाकिस्तान के निर्माण से पहले लाहौर के मॉडल टाउन में अपने माता-पिता के साथ रहने वाले सोम आनंद ने बताया कि प्रोफ़ेसर बृज नारायण पाकिस्तान के विचार के "उत्साही समर्थक" थे.

वे अख़बारों में लेख लिखते थे जिनमें वे "अर्थशास्त्र के अपने विशाल ज्ञान के आधार पर यह साबित करते थे कि पाकिस्तान एक सफल और टिकाऊ राष्ट्र होगा.

कहा जाता है कि पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना ने उन्हें यहीं रहने के लिए कहा था और वे पाकिस्तान की सेवा में अपना जीवन समर्पित करने के लिए पूरी तरह तैयार थे."

'उनका पक्का यकीन था कि जिन्ना एक लोकतांत्रिक राज्य की स्थापना करना चाहते थे, जहां गैर-मुसलमानों को समान अधिकार प्राप्त होंगे.'

सोम आनंद कहते हैं, "मई 1947 से ही बड़ी संख्या में हिंदू पलायन कर रहे थे और 15 अगस्त तक केवल लगभग दस हजार ही बचे थे, उन्हें उम्मीद थी कि स्थिति में सुधार होगा और वे पाकिस्तान में रह सकेंगे, क्योंकि उनकी जड़ें वहीं थीं."

"लेकिन जैसे ही रेडक्लिफ़ अवॉर्ड सामने आया, आपराधिक तत्वों ने हत्या और लूटपाट शुरू कर दी. इससे जिन्ना की धर्मनिरपेक्ष विचारधारा में विश्वास रखने वालों की उम्मीदें टूट गईं."

हालांकि, प्रोफ़ेसर नारायण 'अपने रुख़ पर कायम रहे और कहा कि पाकिस्तान ही उनकी असली मातृभूमि है, इसलिए उनके लिए वहां से जाने का कोई कारण नहीं है.'

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लाहौर में दंगे: 'वह काफ़िर है, उसे मार डालो'

खुशवंत सिंह ने अपनी आत्मकथा, 'ट्रुथ, लव एंड ए लिटिल मालिस: एन ऑटोबायोग्राफ़ी' में लिखा है कि लाहौर में दंगों की चिंगारी सिख नेता मास्टर तारा सिंह ने लगाई थी, जब उन्होंने पंजाब विधानसभा भवन के बाहर नाटकीय ढंग से अपनी बेल्ट से कृपाण निकाली और चिल्लाये: 'पाकिस्तान मुर्दाबाद!'

सिंह, जो उस समय लाहौर में थे, लिखते हैं कि "यह तेल से भरे कमरे में जलती हुई माचिस की तीली फेंकने जैसा था. पूरे प्रांत में सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे."

पत्रकार, लेखक और कवि गोपाल मित्तल के अनुसार, इस बात पर तरह-तरह के कयास लगाए गए कि दंगे सुनियोजित थे या ख़ुद फैल गए.

वे अपनी पुस्तक 'लाहौर का जो ज़िक्र किया' में लिखते हैं, "हालांकि, यह समझ में नहीं आया कि अगर दंगे सुनियोजित थे, तो पाकिस्तान की संपत्ति वाली इतनी सारी दुकानें और घर क्यों जलाए जा रहे थे? जब दंगाइयों ने उस बस्ती पर हमला किया जहाँ प्रोफ़ेसर बृज नारायण रहते थे, तो उन्होंने यही तर्क देकर उन्हें आगजनी और हत्याएँ करने से रोकने की कोशिश की थी."

शोधकर्ता इश्तियाक अहमद ने अपनी किताब में बताया है कि लाहौर में चल रहे दंगों के दौरान प्रोफ़ेसर नारायण की हत्या कैसे हुई. उन्होंने सोम आनंद के हवाले से लिखा है, "एक भीड़ उस इलाके में पहुँची जहाँ वह रहते थे. वह (भीड़) खाली पड़े हिंदू और सिख घरों को जला रही थी और लूट रही थी."

"नारायण उनके पास गए और कहा कि ऐसा मत करो क्योंकि यह अब पाकिस्तान की संपत्ति है. पहला समूह उसकी बातों से आश्वस्त हो गया और चला गया. थोड़ी देर बाद, और गुंडे आए और आगजनी और लूटपाट शुरू कर दी. नारायण फिर उनके पास गए और वही बात दोहराई."

"लेकिन उनमें से एक चिल्लाया: 'यह एक काफ़िर है, इसे मार डालो'"

इसमें लिखा है, "भीड़ उन पर टूट पड़ी और पाकिस्तान के सबसे प्रबल समर्थक की निर्दयतापूर्वक हत्या कर दी गई."

अन्य इतिहासकारों ने भी अपनी किताबों में इस घटना के बारे में लिखा है. 'द कॉफ़ी हाउस ऑफ़ लाहौर: अ मेमॉयर 1942-57' में इतिहासकार के के अज़ीज़ लिखते हैं कि प्रोफ़ेसर बृज नारायण एकमात्र हिंदू विद्वान थे जिन्होंने कांग्रेस के दावों के विपरीत, यह विचार रखा था कि पाकिस्तान एक आर्थिक रूप से प्रेक्टिकल स्टेट होगा. 'वे अपनी कक्षाओं और सेमिनारों में इसे दोहराते थे और सार्वजनिक सभाओं में भी इस पर ज़ोर देते थे.'

के.के. अज़ीज़ लिखते हैं, "जब एक भीड़ उनके घर को आग लगाने के इरादे से आई, तो बृज नारायण ने गली में अपने दरवाजे पर उनका सामना किया और कहा कि कुछ ही दिनों में ये सभी घर पाकिस्तान की संपत्ति हो जाएंगे और इन्हें नुकसान पहुंचाना वास्तव में पाकिस्तान को नुकसान पहुंचाना होगा. उनके शब्दों ने भीड़ को, जो पहली बार आई थी, आश्वस्त कर दिया और वे तितर-बितर हो गए."

"लेकिन थोड़ी देर बाद फिर से भीड़ जमा हो गई. इस बार प्रोफ़ेसर उन्हें मना नहीं पाए. उनकी हत्या कर दी गई और उनकी लाइब्रेरी राख में बदल गई."

कॉलेज की अदला-बदली

गोपाल मित्तल लिखते हैं कि लाहौर के सनातन धर्म कॉलेज के प्रोफ़ेसर बृज नारायण ने पाकिस्तान में ही रहने का निर्णय लिया था और वे "निष्पक्षता में विश्वास रखने वाले कट्टर मुस्लिम लीग समर्थक थे."

गोपाल मित्तल पूर्वी पंजाब से थे, लेकिन उन्होंने लाहौर को भी अपना घर बनाया और अपना अधिकांश समय अपने मुस्लिम सहयोगियों के साथ बिताया.

वह लिखते हैं कि प्रोफ़ेसर नारायण की हत्या "मेरे लिए एक बड़ा झटका थी. वह मेरे शिक्षक थे और मेरे स्वभाव के निर्माण पर उनका बहुत प्रभाव था."

"मेरा परिवार तो पहले भी लाहौर में रुकने को तैयार नहीं था, अब मेरे कदम भी लड़खड़ा गए. जब अमृतसर जाने वाला आखिरी काफिला लाहौर से निकला तो मैं भी एक बस में सवार हो गया. जब काफिला अमृतसर पहुँचा तो वहाँ भी जले हुए घर दिखाई दे रहे थे. लाहौर में तो मेरे माथे पर शहादत की रोशनी नहीं पड़ी थी, लेकिन यहाँ आकर अफ़सोस की बूँदें ज़रूर उभर आईं."

गोपाल मित्तल ने लिखा कि 'कारवां अस्त-व्यस्त हालत में आया था, लेकिन ऐसा लग रहा था जैसे लुटेरे भी उनमें शामिल हों. किसी का ट्रंक गायब था, किसी का बिस्तर गायब था.'

गोपाल मित्तल के अनुसार, बहुत संभव था कि 'अगर प्रोफ़ेसर बृज नारायण जीवित होते तो पाकिस्तान के आर्थिक स्थिरीकरण का कार्य उन्हें सौंपा जाता, लेकिन भाग्य को यह मंजूर नहीं था.'

उन्होंने लिखा है कि प्रोफ़ेसर बृज नारायण की अस्थियाँ उसी पाकिस्तान की धूल में मिलीं, जिससे वह प्यार करते थे.

'आज़ादी के बाद, 1916 में लाहौर में स्थापित सनातन धर्म कॉलेज को भारत के अंबाला में स्थानांतरित कर दिया गया और 1933 में अमृतसर में स्थापित मुहम्मदन एंग्लो-ओरिएंटल (एमएओ) कॉलेज को पाकिस्तान के लाहौर में उसी इमारत में स्थानांतरित कर दिया गया जहाँ प्रोफ़ेसर बृज नारायण पढ़ाते थे.'

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