इस साल फ़रवरी में अमेरिका के टेक्सस राज्य के स्वास्थ्य अधिकारियों ने कई सालों में पहली बार एक बच्चे की मीज़ल्स यानी खसरा की बीमारी के कारण मौत होने की जानकारी दी.
यह ख़बर सुर्खियों में आई. जल्द ही एक और बच्चे की खसरा के कारण मौत हो गई. न्यू मेक्सिको राज्य में एक वयस्क मरीज़ की खसरा के कारण मौत हो गई. इन तीनों को ही ख़सरा से बचाव की वैक्सीन नहीं लगी थी.
साल 2000 में अमेरिका से खसरा की बीमारी के उन्मूलन की घोषणा की गई थी. पच्चीस साल बाद अमेरिका की स्वास्थ्य संस्था सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल यानी सीडीसी ने इस साल जनवरी से मई तक देश में खसरा की बीमारी के कम से कम 900 मामले सामने आने की जानकारी दी.
पिछले साल की तुलना में इसमें 200 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. इस ख़बर पर बहस तेज़ होने का एक कारण यह भी है कि अमेरिका के नए स्वास्थ्य मंत्री रॉबर्ट एफ़ कैनेडी जूनियर शुरू से ही टीकाकरण पर संदेह व्यक्त करते रहे हैं.
केवल अमेरिका ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के लिए बच्चों की यह बीमारी एक बड़ी समस्या है. जैसा कि हमने कोविड महामारी के दौरान देखा कि बीमारियों के वायरस तेज़ी से एक से दूसरे देश में फैलते हैं.
विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक क्षेत्रीय निदेशक ने कहा है कि दुनिया के लिए यह सावधान होने की घड़ी है और व्यापक स्तर पर वैक्सीनेशन के बिना इस बीमारी से सुरक्षा पाना बहुत मुश्किल है. इसलिए इस सप्ताह दुनिया जहान में हम यही जानने की कोशिश करेंगे कि विश्व में खसरा का संक्रमण क्यों बढ़ रहा है?
मीज़ल्स या खसरा क्या है?
यूरोप में पिछले 25 सालों की तुलना में खसरा के सबसे अधिक मामले 2024 में दर्ज हुए. इसमें सबसे अधिक मामले रोमानिया में पाए गए जहां खसरा के तीस हज़ार से अधिक मामले रिकॉर्ड किए गए. रोमानिया स्थित डॉक्टर क्लॉडिया कोयोकारू नवजात शिशु चिकित्सा विशेषज्ञ हैं. हमने उनसे पूछा कि आधुनिक काल में मीज़ल्स यानी खसरा के मरीज़ को देख कर उन्हें क्या लगता है?
उनका जवाब था, "एक साल से कम उम्र के बच्चों को वैक्सीन लगाई जा सकती है. मुझे इस बात का दुख है कि सामाजिक सुरक्षा माध्यम के तौर पर यहां हर्ड इम्युनिटी नहीं थी. और जब लोग वैक्सीन लगवाने से मना कर देते हैं और उनके बच्चों को यह बीमारी हो जाती है तो मुझे बुरा लगता है."
हर्ड इम्युनिटी यानी खसरा से बचने के लिए प्रतिरोध क्षमता का मतलब है कि 95 प्रतिशत आबादी को खसरा से बचने के लिए वैक्सीन या टीका लगा दिया गया हो. इससे समुदाय में खसरा को फैलने से रोका जा सकता है. ख़ास तौर पर बच्चों और उन लोगों को जिनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती है.
खसरा की बीमारी का एक ख़तरा यह है कि जहां लोगों को वैक्सीन नहीं दी गई हो, वहां यह बीमारी बहुत तेज़ी से फैलती है.
डॉक्टर क्लॉडिया कोयोकारू कहती हैं कि यह एक अत्यंत संक्रामक वायरस है. अगर किसी व्यक्ति को वैक्सीन नहीं लगाई गई हो तो उसमें खसरा के दूसरे मरीज से बीमारी का संक्रमण होने की संभावना 90 प्रतिशत होती है.
कोविड की महामारी के दौरान हम सबने आर रेट या रीप्रोडक्शन दर के बारे में जाना.
आर रेट से यह आकलन किया जाता है कि वायरस कितनी तेज़ी से फैलेगा. जिस आबादी में लोगों को वैक्सीन नहीं दी गई है, वहां खसरा का एक मरीज़ 12 से 18 अन्य लोगों को संक्रमित कर सकता है. इस बीमारी के तेज़ी से फैलने का एक कारण यह है कि इसके लक्षण जल्दी सामने नहीं आते.
डॉक्टर क्लॉडिया कोयोकारू बताती हैं कि शुरुआत में खसरा के मरीज़ की तबीयत ख़राब रहती है और तेज़ बुखार होता है. इस दौरान वो दूसरे लोगों को सबसे अधिक संक्रमित कर सकता है.
खसरा के लक्षण के बारे में डॉक्टर क्लॉडिया कोयोकारू कहती हैं कि आम तौर पर मरीज़ के शरीर पर रैशेज़ या लाल चकत्ते उभरने लगते हैं. अक्सर ये चकत्ते कान के पीछे या माथे पर उभरते हैं और धीरे धीरे चेहरे और शरीर के निचले हिस्से पर फैलते हैं. ये चकत्ते एक से दो हफ़्ते तक रहते हैं. वहीं इसके ख़त्म होने के बाद त्वचा छिल जाती है. कई लोगों को यह ग़लतफ़हमी है कि खसरा बच्चों की एक मामूली बीमारी है. डॉक्टर क्लॉडिया कोयोकारू आगाह करती हैं कि इस बीमारी का स्वास्थ्य पर बहुत बुरा असर पड़ता है जिससे कई दिक्कतें पैदा हो जाती हैं.
डॉक्टर क्लॉडिया कोयोकारू ने बताया कि शरीर में खसरा के संक्रमण के बाद हमारी रोगप्रतिरोधक क्षमता छह महीने से तीन साल तक के लिए एक तरह से ढह जाती है. इस समय के दौरान हमारे शरीर में दूसरे बैक्टीरिया या वायरस का संक्रमण हो सकता है.
मिसाल के तौर पर एनसिफ़लाइटीस, न्यूमोनिया, मैनिनजाइटीस और टीबी. खसरा एक वायरल बीमारी है जिसका एंटीबायोटिक या एंटीवायरल दवाई से इलाज नहीं किया जा सकता. लेकिन अगर हम या हमारे परिवार के लोग खसरा के मरीज़ के संपर्क में आते हैं तो हम ख़ुद को और उन्हें फ़ौरन वैक्सीन लगवा सकते हैं. अगर मरीज़ के संपर्क में आने के तीन दिन के भीतर वैक्सीन दे दी जाए तो इसके संक्रमण की संभावना बहुत कम हो जाती है.
क्यों दुनिया में फैल रहा है खसरा
खसरा से बचने के लिए बनाई गई वैक्सीन 1963 से ही उपलब्ध है और बहुत प्रभावशाली रही है. तो खसरा का संक्रमण केवल यूरोप ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में क्यों फैल रहा है?
विश्व स्वास्थ्य संगठन में संक्रामक रोग संबंधी विभाग के निदेशक रॉब बटलर कहते हैं कि चिंताजनक बात यह है कि खसरा के मामले बहुत कम दर्ज किए जाते रहे हैं. उनके अनुसार असल में 2023 में खसरा से एक करोड़ से अधिक लोग संक्रमित हुए थे जिनमें से एक लाख सात हज़ार मरीज़ों की मौत हो गई.
इथियोपिया, कीनिया, सेनेगल, कैमरून और यमन में पिछले साल खसरा का संक्रमण तेज़ी से फैला है और 23 हज़ार मामले सामने आए हैं. भारत, इंडोनेशिया और कनाडा और अमेरिका में भी इस बीमारी का संक्रमण बढ़ रहा है. पिछले साल यूरोप में एक लाख तीस हज़ार मामले सामने आए हैं.

रॉब बटलर ने कहा, "मुख्य तौर पर इसके तीन कारण हैं- कमज़ोरी, ख़ुशफ़हमी और विश्वास. चार साल पहले मैंने अपनी मां को ब्रिटेन में खसरा के संक्रमण के बारे में बताया तो उन्हें विश्वास नहीं हुआ. ऐसा इसलिए क्योंकि उन्हें लगा कि खसरा का उन्मूलन हो चुका है. लेकिन इससे हमारी स्वास्थ्य व्यवस्था की कमज़ोरियां भी उजागर हुई. क्यों कमज़ोर तबके के लोगों को अधिक ख़तरा है. ऐसे में जब पुख्ता सार्वजानिक स्वास्थ्य सुविधा का दम भरने वाले देशों में खसरा का संक्रमण बढ़ रहा है तो वहां की सरकारों को अपने गिरेबान में झांकना चाहिए."
विश्व स्वास्थ्य संगठन और अमेरिका की राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्था सीडीसी द्वारा किए गए शोधकार्य से पता चलता है कि 2023 में दो करोड़ तीस लाख से अधिक बच्चों को मीज़ल्स वैक्सीन का दूसरा डोज़ नहीं लग पाया.
कई देशों में कोविड महामारी के कारण भी बच्चों को बचपन में दी जाने वाली वैक्सीनों का अभियान धीमे पड़ गया था. बच्चों को मीज़ल्स वैक्सीन के दो डोज़ दिए जाते हैं जिसके लिए कई बार मां-बाप को अस्पतालों के कई चक्कर लगाने पड़ जाते हैं. ये नौकरी करने वाले लोगों के लिए मुश्किल हो सकता है. बटलर कहते हैं कि विश्वास की कमी भी वैक्सीनेशन से जुड़ी एक बड़ी समस्या है.
बटलर के अनुसार, कई लोग वैक्सीन से इसलिए भी कतराते हैं क्योंकि उन्हें स्वास्थ्य विभाग, देश के नेताओँ और वैक्सीन बनाने वाली कंपनियों पर विश्वास नहीं होता. हर समुदाय में इसका अलग स्वरूप होता है. वैक्सीनेशन अभियान कैसे चलाया जाए, इस पर राय जानने के लिए स्वास्थ्य क्षेत्र के बाहर के लोगों को भी इसमें शामिल किया जाना चाहिए. मिसाल के तौर पर समाजविज्ञानियों से भी समझा जा सकता है कि लोग किस प्रकार स्वास्थ्य सेवाएं चाहते हैं.
डॉक्टर बेंजामिन डाबुश एक एंथ्रोपोलॉजिस्ट और लंदन स्कूल ऑफ ट्रॉपिकल मेडिसिन में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर हैं. वो कहते हैं कि वैक्सीन से कतराने के बारे में लोग कोविड महामारी के बाद से काफ़ी बात करने लगे हैं. मगर इससे हमारी स्वास्थ्य व्यवस्था कमज़ोर हो सकती है. 1998 से खसरा विरोधी एमएमआर वैक्सीन के इस्तेमाल को लेकर डर पैदा हो गया था. एक पूर्व ब्रितानी डॉक्टर एंड्यू व्हाइटफ़ील्ड एक अकादमिक शोध प्रकाशित करने के बाद दुनियाभर में काफ़ी चर्चा में आ गए थे.
उन्होंने इस लेख में संकेत दिया था कि इस वैक्सीन और ऑटिज़्म के बीच संबंध संभव है. हालांकि कई वैज्ञानिक अध्ययनों के बाद यह दावा ग़लत पाया गया. उनके लेख को हटा दिया गया और 2010 में व्हाइटफ़ील्ड को व्यावसायिक दुर्व्यव्हार की वजह से यूके मेडीकल रजिस्टर से हटा दिया गया.
मगर इस वैक्सीन को लेकर लोगों के मन में संदेह आज भी बैठा हुआ है. डॉक्टर बेंजामिन डाबुश कहते हैं कि मीज़ल्स वैक्सीन से लाखों बच्चों की जान बचाई गई है और फिर भी अगर लोग इससे कतरा रहे हैं तो इसमें व्यवस्था की भूमिका पर भी सवाल उठना चाहिए.
"हाल में एक वैक्सीन क्लीनिक में मेरी एक पिता से बात हुई तो उन्होंने कहा कि वैक्सीन लगवाने के लिए उन्हें अपॉइंटमेंट मिलने में चार हफ़्ते लग गए. हमें पूछना चाहिए कि हमारी सार्वजानिक स्वास्थ्य व्यवस्था के लिए यह कितना अर्जेंट मामला है. खसरा एक ख़तरनाक बीमारी है और बच्चों को इसकी वैक्सीन देने में तत्परता दिखाई जानी चाहिए."
कोविड महामारी के बाद से विश्वभर में वैक्सीन संबंधी समाजिक रुख पर राय बंटी हुई है. कुछ लोग इसे निजी फ़ैसला मानते हैं तो कुछ के लिए यह एक सामाजिक ज़िम्मेदारी का मुद्दा है.
डॉक्टर बेंजामिन डाबुश कहते हैं कि हर देश में इस पर अलग राय हो सकती है मगर खसरा संक्रमण के ख़तरे को देख कर इसका हल ज़रूरी है.
डॉक्टर बेंजामिन का मानना है कि हर समाज में इस मुद्दे को अलग तरीके से देखा जाता है. अमेरिका में निजी स्वतंत्रता एक अहम सामाजिक मूल्य माना जाता रहा है और वैक्सीन के इस्तेमाल का फ़ैसला लोगों के विवेक पर छोड़ने की दलील दी जाती है. मगर दूसरे कई देशों में यह दलील दी जाती है कि बीमारी से सुरक्षा के लिए वैक्सीन लेना एक नैतिक ज़िम्मेदारी है जिसे सभी को निभाना चाहिए, तो हर समाज में इस बारे में अलग रुख है.
अमेरिका के स्वास्थ्य मंत्री रॉबर्ट एफ़ कैनेडी जूनियर वैक्सीन के इस्तेमाल को संदेह से देखते रहे हैं तो क्या उनके रुख़ का असर दूसरे देशों पर भी पड़ेगा?
डॉक्टर बेंजामिन डाबुश ने जवाब दिया, "मुझे लगता है कैनेडी अपने रुख़ को वैक्सीन हेज़ीटैंसी करार देने के बजाए कहेंगे कि वो वैक्सीन लेने या ना लेने को लोगों का निजी फ़ैसला मानते हैं. हां, यह जोखिम ज़रूर है कि उनके बयानों को दूसरे देशों में ग़लत तरीके से लिया जा सकता है. हम जानते हैं आजकल दुनियाभर में ग़लत जानकारी और ख़बरें कितनी तेज़ी से फैलती हैं. हम यह फ़ैसले पूरी तरह लोगों पर नहीं छोड़ सकते."
ये भी पढ़ें-कई देशों मे बच्चों को वैक्सीन देने का काम बहुत मुश्किल होता है. मिसाल के तौर पर किर्गिस्तान के दूरदराज़ के गांवों में बच्चों तक यह सुविधा पहुंचाना बेहद चुनौतिपूर्ण है क्योंकि यह पहाड़ी इलाकों का देश है. यूरोप और मध्य एशिया के लिए यूनीसेफ़ की इम्यूनाइज़ेशन विशेषज्ञ फ़ातिमा चेंगीच कहती हैं कि किर्गिस्तान में भी खसरा का संक्रमण बढ़ रहा है और इस साल अब तक इस बीमारी से दो बच्चों की जान जा चुकी है.
उन्होंने कहा, "दुर्भाग्यवश कई देशों में वैक्सीन कवरेज बहुत कम है. मैं पिछले साल मोंटेनेग्रो में थी. वहां कई इलाकों में कवरेज 25 प्रतिशत से भी कम था."
फ़ातिमा चेंगीच और उनकी टीम 22 देशों में काम करती हैं. इनमें से कई देशों में स्थानीय समुदायों की अलग ज़रूरतें हैं और उनके हिसाब से स्वास्थ्य सुविधाएं पहुंचाने की आवश्यकता है.
फ़ातिमा चेंगीच ने कहा कि कई बार रोमा समुदाय की बस्तियों में संक्रमण फैलता है.
वो कहते हैं, "अन्य लोगों की तुलना में इस समुदाय में बच्चों को वैक्सीन मिलने की संभावना तीन गुना कम होती है. हम रोमा समुदाय के लोगों के साथ मिल कर वहां वैक्सीन पहुंचाने की कोशिश करते हैं. हम पहले बच्चों के मां बाप को वैक्सीन के फ़ायदों के बारे में बताते हैं. मगर 2025 में खसरा के इतने तेज़ संक्रमण से हम काफ़ी चौंक गए हैं. पिछले पच्चीस सालो में पहली बार इतने अधिक मामले हुए हैं."
यूरोप और मध्य एशिया में पिछले साल खसरा के कारण 38 बच्चों की मौत दर्ज की गई है. लेकिन अपर्याप्त रिपोर्टिंग और निगरानी में ढीलाई की वजह से यह आंकड़े असल संख्या से बहुत कम भी हो सकते है.
फ़ातिमा चेंगीच ने बताया कि यूनिसेफ़ अब इस क्षेत्र के लोगों को यह बताने के लिए अभियान चला रहा है कि समय रहते कदम नहीं उठाए तो क्या परिणाम हो सकते हैं. "हम इम्यूनाइज़ेशन योजना में निवेश बढ़ाने के प्रयास भी कर रहे हैं."
यूनिसेफ़ का अनुमान है कि खसरा के हर मरीज़ पर 1200 से 1400 डॉलर खर्च होते हैं जब कि एक बच्चे को वैक्सीन के पूरे डोज़ देने का खर्च 30 से 40 डॉलर है. फ़ातिमा चेंगीच कहती हैं कि कई लोगों को लगता है कि खसरा एक मामूली बीमारी है, जब कि यह एक जानलेवा बीमारी है. वो कहती हैं इससे बचने का एक मात्र तरीका वैक्सीन लगवाना ही है. वो कहती हैं इस वैक्सीन को लेकर मां बाप की चिंताएं स्वाभाविक हैं लेकिन यह वैक्सीन पुरी तरह सुरक्षित और प्रभावी है. वो कहती है इस साल आगे क्या होगा पता नहीं लेकिन खसरा के संक्रमण पर अंकुश लगाया जा सकता है.
तो अब लौटते हैं अपने मुख्य प्रश्न की ओर- विश्व में खसरा का संक्रमण क्यो बढ़ रहा है? जैसा कि हमने अपने दूसरे एक्सपर्ट से सुना संक्रमण के तीन कारण हैं - कनवीनियंस या सुविधा, कंप्लेसंसी या ख़ुशफ़हमी और कानफ़िडैंस यानि विश्वास. खसरा संक्रमण पर काबू पाने के लिए हमें वैक्सीन और इससे जुड़ी जानकारी आसान और विश्वसनीय तरीके से लोगों तक पहुंचानी होगी.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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