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नेतन्याहू ने क़तर से मांगी माफ़ी, क्यों बदले उनके तेवर?

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Win McNamee/Getty Images ग़ज़ा में शांति के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू की सहमति से 20 बिंदुओं वाला प्रस्ताव पेश किया है.

सोमवार को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इसराइली के प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू की मौजूदगी में ग़ज़ा में शांति के लिए एक प्रस्ताव रखा.

बीस बिंदुओं पर आधारित इस शांति योजना के तहत ग़ज़ा में लड़ाई रुक जाएगी, इसराइली बंधक रिहा होंगे और ग़ज़ा के प्रशासन के लिए एक अंतरराष्ट्रीय 'बोर्ड ऑफ़ पीस' गठित किया जाएगा.

इस बोर्ड में ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर भी शामिल होंगे.

राष्ट्रपति ट्रंप ने व्हाइट हाउस में एक प्रेस वार्ता में इस शांति योजना की घोषणा करते हुए इसे ऐतिहासिक क़दम बताया.

इस दौरान प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने कहा कि वो इस योजना का समर्थन करते हैं और इससे इसराइल के युद्ध से जुड़े मक़सद पूरे होंगे.

हालाँकि, हमास अभी इस शांति योजना की समीक्षा कर रहा है और इस पर अभी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है.

इस शांति योजना के तहत, अगर सभी शर्तें पूरी होती हैं तो भविष्य में फ़लस्तीनी राष्ट्र के निर्माण का रास्ता भी खुल सकता है.

हालाँकि, इसराइल के प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू ने ज़ोर देकर कहा है कि इस योजना का मतलब फ़लस्तीनी राष्ट्र का निर्माण नहीं है और इसराइल इस विचार का पूरी ताक़त से विरोध करेगा.

राष्ट्रपति ट्रंप ने ये भी कहा कि अगर हमास इस योजना को स्वीकार नहीं करता है, तो अमेरिका हमास के ख़ात्मे के लिए इसराइल को पूरा सहयोग देगा.

image PA इस प्रस्ताव के तहत ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर ट्रंप की अध्यक्षता वाले "बोर्ड ऑफ़ पीस" में शामिल होंगे

ग़ज़ा के लिए शांति योजना की घोषणा से पहले, इसराइली प्रधानमंत्री ने व्हाइट हाउस में मौजूद रहते हुए क़तर के प्रधानमंत्री (विदेश मंत्री भी) शेख़ मोहम्मद बिन अब्दुर्रहमान बिन जासिम अल थानी को फ़ोन किया. इस कॉल में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी शामिल थे.

इस फ़ोन कॉल के दौरान नेतन्याहू ने 9 सितंबर को क़तर की राजधानी दोहा में हमास के ठिकानों पर हुए हमले के लिए माफ़ी मांगी और इस हमले में क़तर के एक नागरिक की मौत पर अफ़सोस ज़ाहिर किया.

क़तर हमास और इसराइल के बीच शांति वार्ता का मध्यस्थ रहा है. क़तर ने फिर से शांति वार्ता में शामिल होने के लिए इसराइल के माफ़ी मांगने की शर्त रखी थी.

मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक़, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के कहने पर इसराइल ने क़तर से माफ़ी मांगी.

नेतन्याहू ने क़तर से ये भी कहा कि भविष्य में इसराइल क़तर की संप्रभुता का उल्लंघन नहीं करेगा.

इस फ़ोन कॉल के बाद जारी एक बयान में क़तर ने कहा कि वह ग़ज़ा में शांति स्थापित करने के लिए मध्यस्थता के लिए तैयार है.

'इसराइल तुम्हें चुन-चुन कर मारेगा' image Michael M. Santiago/Getty Images संयुक्त राष्ट्र महासभा में 26 सितंबर को नेतन्याहू ने कहा था, "तुरंत बंधकों को रिहा करो, अगर ऐसा करोगे तो ज़िंदा रहोगे. अगर ऐसा नहीं किया तो इसराइल तुम्हें चुन-चुन कर मारेगा."

इस घटनाक्रम से दो दिन पहले ही 26 सितंबर को संयुक्त राष्ट्र महासभा में दिए अपने भाषण में नेतन्याहू ने कहा था, "अगर हमास हमारी शर्तें मान लेता है, तो युद्ध अभी समाप्त हो जायेगा, ग़ज़ा से उसके सैनिक कम हो जाएँगे, इसराइल सुरक्षा नियंत्रण अपने पास रखेगा और हमारे बंधक वापस लौट आएँगे."

ग़ज़ा में बड़े-बड़े स्पीकर लगाकर नेतन्याहू के भाषण को सीधा प्रसारित किया गया था.

नेतन्याहू ने हमास से ज़ोर देकर कहा था, "तुरंत बंधकों को रिहा करो, अगर ऐसा करोगे तो ज़िंदा रहोगे. अगर तुम ऐसा नहीं करोगे तो इसराइल तुम्हें चुन-चुन कर मारेगा."

वहीं, ट्रंप के साथ शांति योजना की घोषणा के समय नेतन्याहू ने ये भी कहा कि अगर हमास इस प्रस्ताव को नकारता है, तो इसराइल ग़ज़ा में अपना काम पूरा करेगा.

7 अक्तूबर 2023 को हमास ने इसराइल पर हमला किया था और एक हज़ार से अधिक इसराइली नागरिकों की हत्या की थी और 250 से अधिक को बंधक बना लिया था.

हमास के साथ संघर्ष विराम समझौतों और आईडीएफ़ के प्रयासों से अभी तक 207 बंधक इसराइल लौट चुके हैं. अभी भी ग़ज़ा में 48 बंधक हैं, जिनमें से 20 जीवित हैं.

7 अक्तूबर के हमले के बाद इसराइल ने ग़ज़ा में हमास को ख़त्म करने के मक़सद से जवाबी सैन्य अभियान शुरू किया था.

इस अभियान में अब तक 66 हज़ार से अधिक फ़लस्तीनी मारे गए हैं. इनमें से आधे से अधिक बच्चे और महिलाएँ हैं. इसके अलावा एक लाख 68 हज़ार से अधिक फ़लस्तीनी घायल हुए हैं.

नेतन्याहू ने क़तर से माफ़ी क्यों मांगी? image EPA/Shutterstock ट्रंप से मुलाक़ात से पहले नेतन्याहू ने क़तर से माफ़ी मांगी

नेतन्याहू ने फ़ोन कॉल कर क़तर से माफ़ी मांगी. ये सामान्य बात नहीं है कि इसराइल या नेतन्याहू ने मध्य पूर्व के किसी राष्ट्र से माफ़ी मांगी है.

इससे पहले 2010 में नेतन्याहू ने ग़ज़ा में मदद के लिए जा रहे तुर्की के मावी मारमारा फ़्लोटिला पर हमले के लिए तुर्की से माफ़ी मांगी थी.

विश्लेषक मानते हैं कि क़तर पर हमले के बाद नेतन्याहू अंतरराष्ट्रीय जगत में अलग-थलग पड़ गए थे, इसलिए उन्होंने क़तर से माफ़ी मांगी.

संयुक्त राष्ट्र में जब नेतन्याहू ने अपना संबोधन शुरू किया था, तब अधिकतर देशों के प्रतिनिधि इसके विरोध में हॉल से बाहर चले गए थे.

अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार प्रोफ़ेसर फ़ज़्ज़ुर्रहमान कहते हैं, "इसराइल ने क़तर पर हमला करके अंतरराष्ट्रीय कूटनीति के सभी नियम तोड़ दिए थे. क़तर ने मध्य पूर्व के कई संघर्षों में मध्यस्थ की भूमिका निभाई है और हमास के साथ मध्यस्थता में भी उसकी अहम भूमिका रही है. क़तर पर हमले को इसराइल की निरंकुशता के रूप में देखा गया और यूरोपीय सहयोगियों समेत कई देशों ने इसराइल से किनारा कर लिया. ये तो ज़ाहिर है कि नेतन्याहू पर क़तर से माफ़ी मांगने का दबाव था."

लेकिन सवाल ये है कि क्या इसराइल या नेतन्याहू पर किसी अंतरराष्ट्रीय दबाव का असर पड़ता है?

प्रोफ़ेसर फ़ज़्जुर्रहमान कहते हैं, "व्यावहारिक रूप से देखा जाए, तो इसराइल अपने तरीक़े से अपनी योजना पर आगे बढ़ रहा है, उसके अपने सुरक्षा लक्ष्य अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आलोचना से ज़्यादा अहम हैं. लेकिन क़तर से माफ़ी मांगकर इसराइल ने संकेत दिए हैं कि वह ग़ज़ा में शांति के लिए वार्ता के लिए तैयार हैं."

फ़ज़्ज़ुर्रहमान कहते हैं, "नेतन्याहू हमास के साथ वार्ता के ख़िलाफ़ रहे हैं. उन्हें ये लग रहा था कि अब ग़ज़ा में सिर्फ़ इसराइल और अमेरिका का दख़ल रह गया है और बाक़ी सभी देश पीछे हट गए हैं. ऐसे में उन्होंने क़तर में हमास पर हमला करने का क़दम उठाया था. नेतन्याहू ने अब माफ़ी मांगी है, इससे पहले उन्होंने डेढ़ दशक पहले माफ़ी मांगी थी. यानी कहीं ना कहीं ट्रंप के दबाव में या संयुक्त राष्ट्र में विरोध के बाद नेतन्याहू ने क़तर से माफ़ी मांग ली. उन्होंने ये संकेत भी दिया है कि वो अंतरराष्ट्रीय समुदाय में विश्वास भी रखते हैं."

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क्या पीछे हट रहे हैं नेतन्याहू? image Reuters ट्रंप के प्रस्ताव में फ़लस्तीनी राष्ट्र को लेकर कोई ठोस बात नहीं कही गई है.

विश्लेषक मानते हैं कि घरेलू स्तर पर नेतन्याहू को आलोचना का सामना करना पड़ सकता है.

अंतरराष्ट्रीय मामलों की जानकार मंजरी सिंह कहती हैं, "ये नेतन्याहू के सहयोगियों के घोषित स्टैंड के ख़िलाफ़ है. नेतन्याहू को इसके लिए घरेलू स्तर पर आलोचना का सामना करना पड़ेगा."

अभी जो शांति प्रस्ताव पेश किया गया है, उसका एक अहम बिंदु ये भी है कि ग़ज़ा के लोगों को ज़बरदस्ती नहीं हटाया जाएगा.

मंगलवार को दिए एक बयान में भी नेतन्याहू ने कहा है कि ग़ज़ा के लिए लोग अपनी मर्ज़ी से इलाक़ा छोड़ने या यहाँ वापस आने के लिए स्वतंत्र होंगे.

इसके अलावा ग़ज़ा की सुरक्षा के लिए अंतरराष्ट्रीय बलों की तैनाती का प्रस्ताव भी इसमें शामिल है.

विश्लेषक मानते हैं कि नेतन्याहू अपने पुराने और सख़्त स्टैंड से थोड़ा पीछे हट रहे हैं.

अंतरराष्ट्रीय मामलों की जानकार मंजरी सिंह कहती हैं, "नेतन्याहू अपने हार्डलाइन एजेंडे से पीछे हटते दिख रहे हैं. क़तर पर हमले के बाद नेतन्याहू और इसराइली सरकार ने कहा था कि उनके लिए सबसे अपने राष्ट्र की सुरक्षा है. नेतन्याहू ने क़तर में अपनी ग़लती मानी है और अब शांति योजना के लिए सहमति दी है, एक तरह से वो समझौता करते दिख रहे हैं."

वहीं फ़ज़्ज़ुर्रहमान कहते हैं, "फ़्रांस और ब्रिटेन जैसे देश जो इसराइल के निर्माण में अहम रहे थे, वो भी इसराइल से बचते दिख रहे थे, ऐसे में नेतन्याहू को लगा होगा कि वो बिल्कुल अलग-थलग नहीं रह सकते हैं."

क्या फँस गए हैं नेतन्याहू? image AFP via Getty Images ग़ज़ा में अक्तूबर 2023 के बाद इसराइली हमलों में कम से कम 66 हज़ार लोग मारे गए हैं

विश्लेषक मानते हैं कि अगर नेतन्याहू इस शांति समझौते को पूरी तरह मान लेते हैं और यह लागू हो जाता है, तो वे घरेलू स्तर पर फँस जाएँगे.

दरअसल, नेतन्याहू की लिकुड पार्टी कई कट्टरवादी पार्टियों के साथ सरकार चला रही है. ये दल ग़ज़ा से किसी भी सूरत में पीछे हटना नहीं चाहते हैं.

इन दलों में वित्त मंत्री बेज़ालेल स्मोतरिच की पार्टी भी शामिल है, जिसके पास 14 सीटें हैं.

ट्रंप की शांति योजना के केंद्र में ग़ज़ा को क़ब्ज़े से मुक्त करना है. ये स्मोतरिच जैसे नेताओं के लिए 'रेड लाइन' है.

मंजरी सिंह कहती हैं, "नेतन्याहू ने इस योजना पर सहमति तो दे दी है. अगर ये लागू होती है तो नेतन्याहू के लिए प्रधानमंत्री बने रहना मुश्किल होगा, क्योंकि जो यहूदी दल उनका समर्थन कर रहे हैं, वे किसी भी सूरत में ग़ज़ा पर इसराइली क़ब्ज़ा छोड़ने के लिए सहमत नहीं होंगे."

प्रोफ़ेसर फ़ज़्ज़ुर्रहमान कहते हैं, "नेतन्याहू के अमेरिका जाने से पहले उनकी सरकार में शामिल स्मोतरिच जैसे कट्टरवादी मंत्रियों ने कहा था कि कुछ चीज़ों पर समझौता नहीं करना है. इनमें ग़ज़ा से इसराइली सेना का पीछे हटना शामिल हैं. ये दल नेतन्याहू के इस क़दम को आसानी से स्वीकार नहीं करेंगे."

नेतन्याहू पर बंधकों के परिजनों का दबाव भी है. संयुक्त राष्ट्र में उन्होंने अपना भाषण बंधकों के परिवारों को संबोधित करते हुए शुरू किया.

प्रोफ़ेसर फ़ज़्ज़ुर्रहमान कहते हैं, "नेतन्याहू पर बंधकों को रिहा कराने का भारी दबाव है. यह दबाव उनके भाषण में भी नज़र आया. बार-बार उन्होंने बंधकों को संबोधित किया और कहा कि आप हमारी यादों में है."

क्या नेतन्याहू ने हमास पर दांव चला? image Getty Images इसराइल के प्रधानमंत्री बेन्यामिन नेतन्याहू ने ज़ोर देकर कहा है कि इस योजना का मतलब फ़लस्तीनी राष्ट्र का निर्माण नहीं है.

हमास ने अभी इस प्रस्ताव पर प्रतिक्रिया नहीं दी है. हालाँकि विश्लेषक मान रहे हैं कि बहुत संभव है हमास इस प्रस्ताव को नकार दे.

दरअसल, हमास और इसराइल के बीच कभी भी भरोसा नहीं रहा है. न तो हमास इसराइल पर भरोसा करता है और न ही इसराइल हमास पर.

इससे पहले भी जब संघर्ष विराम हुए, वे बहुत कारगर नहीं रहे.

प्रोफ़ेसर फ़ज़्ज़ुर्रहमान कहते हैं, "हमास ने अभी प्रतिक्रिया नहीं दी है. अगर हमास इसे स्वीकार कर लेता है तो उसे हथियार डालने होंगे और अपने नेटवर्क को ख़त्म करना होगा. हो सकता है कि नेतन्याहू ये मानकर चल रहे हों कि हमास इस प्रस्ताव को स्वीकार नहीं करेगा. ऐसी स्थिति में वो और अधिक आक्रामक कार्रवाई को भी ये कहकर तर्कसंगत ठहरा सकेंगे कि उन्होंने मौक़ा दिया था, लेकिन हमास ही शांति नहीं चाहता."

कार्नेगी एंडाउमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस के सीनियर फ़ेलो आरोन डेविड मिलर ने भी एक विश्लेषण में ऐसी ही राय ज़ाहिर करते हुए कहा है, "ऐसा लग रहा है कि नेतन्याहू हमास के प्रस्ताव को रद्द कर देने पर निर्भर हैं. अगर हमास प्रस्ताव को नकार देता है, तो जैसा कि राष्ट्रपति ट्रंप ने कहा है, इसराइल को अमेरिका का भी पूरा सहयोग मिलेगा."

वहीं, मंजरी सिंह कहती हैं, "नेतन्याहू के लिए मुश्किल ये है कि अगर ये शांति योजना लागू होती है तो उनके लिए घरेलू स्तर पर सरकार चलाना बहुत मुश्किल होगा. उनके सहयोगी इस पर तैयार नहीं होंगे और समर्थन खींच लेंगे."

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