जब जेमिमा रॉड्रिग्स लगभग 11 साल की थीं, तब उनके पिता ने उनसे पूछा था, "तू क्रिकेट खेलेगी या हॉकी?"
इस सवाल को सुनते ही जेमिमा की आंखों से आँसू बहने लगे थे. वो दोनों खेलों में बेहतरीन थीं, लेकिन उन्होंने क्रिकेट को चुना.
आज 14 साल बाद, वही जेमिमा भारत की एक यादगार जीत की नायिका बन चुकी हैं. जेमिमा के शतक ने भारत को वनडे वर्ल्ड कप के फ़ाइनल में पहुंचा दिया है.
रविवार को भारत की टीम, दक्षिण अफ़्रीका के ख़िलाफ़ महिला वर्ल्ड कप का फ़ाइनल खेलने वाली है. जेमिमा इस टीम का हिस्सा हैं.
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लेकिन जेमिमा के लिए यहां तक का सफर आसान नहीं था. मुंबई की लोकल ट्रेन में धक्के खाने से लेकर टीम से बाहर किए जाने तक उन्होंने कई मुश्किलों का सामना किया.
साल 2022 में तो उन्हें वनडे वर्ल्ड कप की भारतीय टीम से बाहर कर दिया गया था. लेकिन तीन साल बाद, उसी जेमिमा ने भारत को फ़ाइनल तक पहुंचा दिया.
मैच के बाद जेमिमा ने खुलकर बताया कि इस जीत के पीछे एक बड़ा मानसिक संघर्ष छिपा था. उन्होंने कहा, "मैं हर रोज़ रोई हूं. मुझे चिंता महसूस होती थी. ये मेरे लिए बहुत बड़ा चैलेंज था."
जेमिमा के लिए संघर्ष कोई नई बात नहीं है. लेकिन घरवालों का समर्थन, कोच का मार्गदर्शन, साथियों का सहयोग और उनकी अपनी मेहनत की बदौलत आज उन्होंने क्रिकेट की दुनिया में अपनी अलग पहचान बना ली है.
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ANI जेमिमा यानी अपने चाहने वालों की प्यारी "जेमी", सिर्फ तीन साल की थीं जब उनके दादाजी ने उन्हें प्लास्टिक की क्रिकेट बैट तोहफ़े में दी थी.
जेमिमा ने बाद में बताया, "मुझे बार्बी डॉल जैसी चीज़ें कभी पसंद नहीं थीं. मेरे दादाजी को ये पता था, इसलिए उन्होंने मुझे बैट दी. हम गली में ही क्रिकेट खेलते थे. जब भी हाथ में बैट उठाती थी, बहुत खुशी महसूस होती थी."
यहीं से जेमिमा के क्रिकेट सफ़र की शुरुआत हुई. शुरू में वो अपने दो भाइयों, इनॉक और एली, के साथ खेला करती थीं. तीनों के पहले कोच उनके पिता आइवन रॉड्रिग्स ही थे.
बाद में एली वांद्रे के एमआईजी क्लब अकादमी के लिए खेलने लगे, जहां कोच प्रशांत शेट्टी ट्रेनिंग दिया करते थे. एक दिन आइवन और जेमिमा की मां लविता उनसे मिले और बोले "हमारी बेटी का खेल भी एक बार देखिए." उस वक्त जेमिमा करीब आठ-नौ साल की थीं.
प्रशांत शेट्टी ने बताया, "उस समय, यानी 2007-08 में बहुत कम लड़कियां क्रिकेट खेलती थीं. मैंने कभी एमआईजी क्लब में किसी लड़की को खेलते नहीं देखा था."
फिर भी उन्होंने जेमिमा के माता-पिता की बात मान ली. अगले दिन जेमिमा मैदान पर पहुंचीं और अभ्यास शुरू किया.
पहला ही शॉट जो उन्होंने खेला, वो था कवर ड्राइव. तभी प्रशांत शेट्टी को महसूस हुआ कि इस लड़की में कुछ ख़ास बात है.
लड़की होने के बावजूद जेमिमा को एमआईजी क्लब में खेलने की इजाज़त मिल गई. उस दौर में वो लड़कों के साथ ही खेलती थीं.
कई रिश्तेदार जेमिमा के माता-पिता से कहते थे, "लड़की को क्रिकेट कैसे खेलने देते हो?" लेकिन जेमिमा ने बाद में कहा कि उनके माता-पिता और कोच ने शुरू से ही उनका पूरा साथ दिया.
उस वक्त रॉड्रिग्स परिवार भांडुप में रहता था. मां लविता सुबह चार बजे उठकर बच्चों का खाना तैयार करतीं और फिर लोकल ट्रेन से जेमिमा और उनके भाई खेलने के लिए वांद्रे तक जाते थे.
अगर आपने कभी मुंबई की लोकल ट्रेन में सफर किया हो, तो भारी क्रिकेट किट के साथ दादर में ट्रेन बदलकर वांद्रे पहुंचना कितना मुश्किल होता है, ये आप समझ सकते हैं.
लेकिन मुंबई लोकल की इसी यात्रा ने उनकी जिद और मेहनत को और मज़बूत किया. हालांकि बाद में बच्चों के खेल के लिए रॉड्रिग्स परिवार वांद्रे में ही आकर बस गया.
हॉकी, बास्केटबॉल, फुटबॉल या क्रिकेट?जेमिमा सिर्फ हॉकी और क्रिकेट ही नहीं, बल्कि स्कूल की तरफ़ से फ़ुटबॉल और बास्केटबॉल भी खेला करती थीं.
बारह साल की उम्र तक उन्होंने महाराष्ट्र की ओर से जूनियर राष्ट्रीय हॉकी टूर्नामेंट में हिस्सा लिया था और क्रिकेट में भी अपने आयु वर्ग की ज़ोनल प्रतियोगिता में खेल चुकी थीं.
मुंबई के मशहूर ओलंपियन और भारतीय हॉकी टीम के पूर्व कप्तान और कोच जोआकिम कार्वालो ने एक बार जेमिमा के पिता से कहा था, "आपकी बेटी भारत के लिए खेल सकती है."
जब जेमिमा के सामने दो रास्ते रखे गए, हॉकी खेलकर ओलंपिक तक पहुंचने का या फिर क्रिकेट में करियर बनाने का, तब 11 साल की उम्र में उन्होंने क्रिकेट को प्राथमिकता देने का फ़ैसला किया.
उस समय उन्हें महसूस हुआ कि क्रिकेट में वो और आगे जा सकती हैं और उनका यह फ़ैसला बिल्कुल सही साबित हुआ.
साल 2012-13 में, सिर्फ 13 साल की उम्र में जेमिमा को मुंबई की अंडर-19 टीम में जगह मिल गई.
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मुंबई के क्रिकेट सर्कल में, ख़ासकर महिला क्रिकेट में, उस समय जेमिमा का नाम काफ़ी चर्चा में रहता था. लेकिन जल्द ही पूरे देश ने भी उनकी प्रतिभा को पहचान लिया.
साल 2017 में घरेलू अंडर-19 वनडे टूर्नामेंट के दौरान जेमिमा ने सौराष्ट्र के ख़िलाफ़ नाबाद 202 रनों की शानदार पारी खेली. स्मृति मंधाना के बाद ऐसा कारनामा करने वाली वो दूसरी खिलाड़ी बनीं. इस पारी के बाद क्रिकेट में जेमिमा का नाम तेज़ी से उभरने लगा.
इसके बाद चैलेंजर ट्रॉफ़ी में बेहतरीन प्रदर्शन और भारत ए टीम के लिए शानदार खेल की बदौलत जेमिमा को 2018 की शुरुआत में भारत की वनडे टीम में जगह मिली.
उसी साल उन्होंने टी-20 वर्ल्ड कप में भी डेब्यू किया और अर्धशतक लगाकर अपनी शुरुआत यादगार बना दी.
शुरुआती दिनों में उम्र में बाकी खिलाड़ियों से छोटी होने की वजह से सब जेमिमा का ख़ास ध्यान रखते थे. टीम में सब उन्हें जैसे कोई नन्ही बच्ची समझते थे. लेकिन उम्र के अंतर के कारण कभी-कभी उन्हें थोड़ा अकेलापन भी महसूस होता था.
उसी दौरान उनकी दोस्ती स्मृति मंधाना से हुई. जेमिमा कहती हैं कि दोनों शुरुआत में रूम पार्टनर थीं और अब लगभग बहनों जैसी हैं.
मैदान पर जेमिमा की पहचान जितनी मज़बूत होती गई, उतनी ही लोकप्रियता उन्हें मैदान के बाहर भी मिलने लगी. क्रिकेट के साथ-साथ उसका गिटार बजाना और सोशल मीडिया पर उनकी सहज मौजूदगी लोगों को खूब पसंद आने लगी.
जेमिमा अब बिग बैश लीग जैसी अंतरराष्ट्रीय टी-20 प्रतियोगिताओं में खेलती हैं और कई बार इन टूर्नामेंट्स की पहचान बन चुकी हैं. आज जेमिमा को भारत में महिला क्रिकेट की ब्रांड एंबेसडर्स में से एक माना जाता है.
'कमबैक क्वीन'भारतीय टीम में जेमिमा का सफर हमेशा आसान नहीं रहा. बीच-बीच में उन्हें कई उतार-चढ़ाव झेलने पड़े.
साल 2022 में हुए वनडे वर्ल्ड कप के लिए उन्हें भारतीय टीम से बाहर कर दिया गया था. लेकिन जेमिमा ने जल्द ही शानदार वापसी की.
उनकी वापसी के बाद, अगस्त 2022 में जेमिमा जब भारतीय टीम में आईं तब टीम ने कॉमनवेल्थ गेम्स में रजत पदक जीता. इसके अगले ही साल यानी 2023 में एशियाई खेलों में भारत को स्वर्ण पदक मिला.
उसी साल जेमिमा विमेंस प्रीमियर लीग के पहले सीज़न में दिल्ली कैपिटल्स की ओर से खेलीं. दिसंबर 2023 में उन्हें इंग्लैंड के ख़िलाफ़ टेस्ट मैच में डेब्यू करने का मौक़ा भी मिला.
डीवाई पाटिल स्टेडियम न सिर्फ़ जेमिमा का बल्कि भारतीय महिला टीम का भी घरेलू मैदान माना जाता है. इसी मैदान पर जेमिमा ने अब वनडे वर्ल्ड कप में एक ऐसी पारी खेली है जो इतिहास में याद रखी जाएगी.
हालांकि इस टूर्नामेंट में शुरुआत उनके लिए कठिन रही. श्रीलंका के ख़िलाफ़ पहले मैच में और फिर दक्षिण अफ्रीका के ख़िलाफ़ वो शून्य पर आउट हो गईं.
लेकिन एक सच्ची 'कमबैक क्वीन' की तरह उन्होंने ज़बरदस्त वापसी की.
पहले न्यूज़ीलैंड के ख़िलाफ़ नाबाद 76 रन बनाकर भारत को सेमीफ़ाइनल तक पहुंचाया. इसके बाद 30 अक्तूबर 2025 को ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ नाबाद 127 रनों की शानदार पारी खेलकर भारत को ऐतिहासिक जीत दिलाई और टीम को फ़ाइनल में पहुंचाया.
कोच प्रशांत शेट्टी ने इस पारी के बारे में कहा, "ये सिर्फ़ महिला क्रिकेट की नहीं, बल्कि हर क्रिकेटर के लिए सीखने वाली पारी है. असल में ये हर उस इंसान के लिए प्रेरणादायक है जो किसी चुनौती का सामना कर रहा है."
वर्ल्ड कप की रिकॉर्ड पारीअपने पहले ही वनडे वर्ल्ड कप के सेमीफ़ाइनल में खेलते हुए जेमिमा ने 134 गेंदों में 14 चौकों की मदद से नाबाद 127 रनों की शानदार पारी खेली. यह उनके अंतरराष्ट्रीय वनडे करियर का तीसरा शतक था.
उनकी इस पारी की बदौलत भारत ने 339 रनों का विशाल लक्ष्य हासिल किया. महिला वनडे क्रिकेट के इतिहास में किसी भी टीम की तरफ़ से कामयाब रन-चेज़ में बनाई गई यह अब तक का सबसे बड़ा स्कोर साबित हुआ.
आमतौर पर जेमिमा मिडिल ऑर्डर में पांचवें नंबर पर बल्लेबाज़ी करती हैं, लेकिन इस मैच में उन्हें तीसरे नंबर पर भेजा गया. मैच के बाद उन्होंने बताया कि जब भारत की पारी शुरू हुई तो वो नहाने गई थीं. उन्हें पहले से यह पता नहीं था कि उन्हें तीसरे नंबर पर उतरना है.
खेल शुरू होने के ठीक पांच मिनट पहले उन्हें जानकारी दी गई कि वो तीसरे नंबर पर बल्लेबाज़ी करने जा रही हैं.
अचानक मैदान में उतरने के बावजूद उनके खेल में ज़रा भी घबराहट नहीं दिखी. उन्होंने कप्तान हरमनप्रीत के साथ 167 रनों की मज़बूत साझेदारी कर भारत की जीत की नींव रखी.
आमतौर पर जब कोई बल्लेबाज़ शतक लगाता है तो वह बैट उठाकर जश्न मनाता है. वर्ल्ड कप में बना शतक तो और भी ख़ास माना जाता है. लेकिन ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ इतना शानदार शतक लगाने के बाद भी जेमिमा ने उस पल को सेलिब्रेट नहीं किया.
वो जीत के इंतज़ार में थीं और जब जीत पक्की हुई, तभी उन्होंने अपनी भावनाओं को खुलकर व्यक्त किया.
मानसिक तनाव पर जीतजेमिमा कहती हैं, "यह महीना मेरे लिए बेहद कठिन रहा. सब कुछ किसी सपने जैसा लग रहा है और अब भी यकीन नहीं हो रहा. पिछली बार मुझे इस टूर्नामेंट से बाहर कर दिया गया था. तब मैं अच्छी फ़ॉर्म में थी, लेकिन एक के बाद एक चीज़ें होती रहीं और मेरे बस में कुछ नहीं था."
मैदान पर फ़ॉर्म पाने की कोशिशों के साथ-साथ जेमिमा को मैदान के बाहर भी विवादों का सामना करना पड़ा. साल 2024 के आख़िर में उनके पिता आइवन रॉड्रिग्स के मुंबई के खार जिमखाना में आयोजित एक कार्यक्रम को लेकर विवाद हुआ था.
इन सबके बावजूद जेमिमा ने ख़ुद को संभाले रखा. वर्ल्ड कप में भले ही उनके बल्ले से रन न निकल रहे हों, लेकिन अपनी फ़ील्डिंग से उन्होंने सबका ध्यान खींचा.
उन्होंने कहा, "मैं इस टूर्नामेंट में लगभग हर दिन रोई हूं. मानसिक रूप से यह समय बहुत कठिन था. मुझे एंग्ज़ायटी महसूस होती थी. मैंने ठान लिया था कि मैदान में उतरते रहना है, बाकी सब भगवान पर छोड़ देना है. शुरुआत में मैं बस खेल रही थी और ख़ुद से बातें कर रही थी. अंत में जब बहुत मुश्किल लगने लगा, तो मैं सिर्फ़ खड़ी रह सकूं, इसके लिए बाइबल की पंक्तियां दोहरा रही थी."
अंदर से इतनी उथल-पुथल के बावजूद जेमिमा ने ख़ुद को शांत रखने की कोशिश की, क्योंकि उन्हें भरोसा था कि वो अब भी बहुत कुछ कर सकती हैं.
और इस बात पर न सिर्फ़ उनके प्रशंसक, बल्कि क्रिकेट विशेषज्ञ भी यकीन करते हैं कि जेमिमा के पास अभी और बहुत कुछ देने की क्षमता है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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