मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले में दुर्वा या डूब नामक एक दुर्लभ घास पाई जाती है। यह घास केवल कुछ विशेष स्थानों पर ही मिलती है। मान्यता है कि इस घास को भगवान गणेश को अर्पित करने से शारीरिक बीमारियों में राहत मिलती है। इसे भगवान गणेश के साथ-साथ गौरी और कलश को भी अर्पित किया जाता है। छतरपुर के पंडित नंद बाबू शुक्ला बताते हैं कि दुर्वा अन्य घासों से भिन्न है। यह छोटी और पतली होती है। छतरपुर में दुर्वा आसानी से मिल जाती है।
दुर्वा घास की विशेषताएँ
पंडित नंद बाबू बताते हैं कि यह औषधीय घास, दुर्वा या डूब, केवल कुछ स्थानों पर उगती है, जैसे कि कुओं के पास। यह तालाबों के किनारे भी पाई जाती है। यदि आपके घर में तुलसी है, तो यह छोटी घास सर्दियों में वहां उगती है।
भगवान गणेश की पूजा में दुर्वा का अनिवार्य होना
दुर्वा के बिना भगवान गणेश की पूजा अधूरी है।
पंडित नंद बाबू शुक्ला आगे बताते हैं कि दुर्वा को गौरी, गणेश और कलश पर पवित्र माना जाता है। यह घास शादी और अन्य समारोहों में अनिवार्य रूप से अर्पित की जाती है, जहाँ भगवान गणेश की पूजा होती है। दुर्वा का अर्पण भगवान गणेश को करना अनिवार्य है।
दुर्वा घास के औषधीय गुण
बीमारियों का उपचार।
पंडित नंद बाबू बताते हैं कि इस घास को भगवान गणेश को अर्पित करने से शारीरिक बीमारियों में राहत मिलती है। यह घुटने और हाथ के दर्द को ठीक कर सकती है। यही इस घास की मुख्य विशेषता है। हम भगवान गणेश को फूल, चंदन, चावल अर्पित करते हैं और आरती करते हैं, और दुर्वा अर्पित करने से वह शारीरिक दर्द को कम करते हैं। यह एक औषधीय जड़ी-बूटी है जो दर्द को कम करती है। छतरपुर जिले में लोग दुर्वा को भगवान गणेश को अर्पित करते हैं ताकि शारीरिक बीमारियों में राहत मिल सके।
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