New Delhi, 16 सितंबर . आयुर्वेद केवल रोगों के उपचार का विज्ञान नहीं है, बल्कि यह जीवनशैली को संतुलित और स्वस्थ बनाने का मार्गदर्शन भी करता है. दैनिक जीवन की छोटी-छोटी आदतें शरीर और मन दोनों पर गहरा प्रभाव डालती हैं. इन्हीं में से एक आदत है, समय-समय पर बाल और नाखून काटना.
आयुर्वेद के अनुसार, जब सिर के बाल, मूंछ या नाखून लंबे हो जाते हैं तो शरीर पर अतिरिक्त भार महसूस होता है. यह भार सीधा-सीधा मानसिक और शारीरिक हलचल पर असर डालता है. बाल और नाखून काटने से शरीर हल्का महसूस करता है, जिससे काम करने में ऊर्जा और एकाग्रता बढ़ती है.
स्वच्छता को आयुर्वेद में ‘आचार’ का हिस्सा माना गया है. लंबे नाखून और बिना संवारे बालों में धूल, गंदगी और पसीना आसानी से जमा हो जाता है. यह वातावरण बैक्टीरिया और फंगस के विकास को बढ़ावा देता है, जिससे संक्रमण और त्वचा रोगों का खतरा बढ़ जाता है. नियमित रूप से बाल और नाखून काटने से इन जीवाणुओं का जमाव रुकता है और शरीर शुद्ध व स्वस्थ बना रहता है.
लंबे नाखूनों के किनारों में अक्सर अदृश्य सूक्ष्मजीव पनप जाते हैं. ये जीवाणु भोजन बनाते समय या चेहरे को छूते समय शरीर के भीतर प्रवेश कर सकते हैं.
आयुर्वेद में इसे रोग का प्रवेश द्वार माना गया है. नाखून छोटे और स्वच्छ रखने से संक्रमण की संभावना काफी कम हो जाती है. इसी प्रकार मूंछों की नियमित देखभाल न केवल चेहरे की सुंदरता बढ़ाती है, बल्कि होंठ और नाक के आसपास स्वच्छता भी बनाए रखती है.
आयुर्वेद मन और शरीर के संतुलन पर जोर देता है. स्वच्छ और संतुलित रूप-रंग व्यक्ति को आत्मविश्वास देता है और सामाजिक जीवन को भी सकारात्मक बनाता है. मूंछें भारतीय संस्कृति में शौर्य और सम्मान का प्रतीक रही हैं, लेकिन इनकी नियमित देखभाल करना भी उतना ही आवश्यक है. बिना संवारे बाल या नाखून जहां शरीर पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं, वहीं यह सामाजिक दृष्टि से भी अस्वच्छता का संकेत माने जाते हैं.
बाल और नाखून काटना केवल सुंदर दिखने के लिए नहीं है, बल्कि यह शरीर की स्वच्छता, स्वास्थ्य और मानसिक संतुलन बनाए रखने का एक अनिवार्य नियम है. आयुर्वेद मानता है कि जब व्यक्ति शरीर को स्वच्छ रखता है, तो उसकी आभा और ऊर्जा दोनों बढ़ जाती हैं. यह आभा जीवनशक्ति (ओजस) को मजबूत करती है और दीर्घायु का आधार बनती है.
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पीआईएम/एबीएम
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