बीजिंग, 1 सितंबर . भारतीय Prime Minister Narendra Modi लगभग सात साल बाद चीन के दौरे पर आए. उनका मुख्य मकसद शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेना है. लेकिन चीन-भारत संबंधों के लिहाज से भी पीएम मोदी की चीन यात्रा बेहद अहम मानी जा रही है. थ्येनचिन पहुंचने के बाद उन्होंने चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग के साथ मुलाकात की. पिछले वर्ष रूस के कज़ान में भेंट के बाद यह दूसरा मौका है जब दोनों नेता मिले हैं. जानकार कहते हैं कि चीन और भारत के नेताओं ने हाल के दिनों में जिस तरह से सकारात्मक कदम उठाए हैं. ऐसे में द्विपक्षीय रिश्तों के पटरी पर आने की काफी उम्मीद है.
बता दें कि चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग और भारतीय Prime Minister मोदी ने एससीओ सम्मेलन के इतर बैठक की, जो कि लगभग एक घंटे तक चली. इस दौरान दोनों नेताओं ने हाल के समय में संबंध सुधारने को लेकर हुई कोशिशों और प्रयासों का उल्लेख किया, जिसमें कहा गया कि चीन और भारत दो प्राचीन सभ्यताओं वाले देश हैं, दोनों विश्व के सबसे अधिक आबादी वाले राष्ट्र भी हैं. दोनों पड़ोसी देश हैं, जिनके बीच सहयोग बहुध्रुवीय दुनिया और स्थिरता के लिए बहुत अहम है. भारत और चीन साझेदार हैं, प्रतिद्वंद्वी नहीं. ऐसे में दोनों के बीच सहमतियां मतभेदों से कहीं अधिक हैं.
31 अगस्त को थ्येनचिन गेस्ट हाउस में दोनों नेताओं की मुलाकात पर पूरी दुनिया की नजर थी. भारत और अमेरिका के संबंधों में आई खटास के बाद शी और पीएम मोदी की भेंट का महत्व बढ़ गया है. चीनी राष्ट्रपति के शब्दों में, चीन और भारत ग्लोबल साउथ के महत्वपूर्ण सदस्य हैं, साथ ही पड़ोसी भी. ऐसे में “ड्रैगन और हाथी का साथ में डांस” साकार करना दोनों देशों के लिए अच्छा विकल्प रहेगा. दोनों प्राचीन सभ्यता वाले राष्ट्र हैं, जिनके बीच सदियों तक घनिष्ठ आदान-प्रदान रहा था. लेकिन हाल के दशकों में द्विपक्षीय संबंध उतार-चढ़ाव भरे रहे हैं. ऐसे में दोनों देशों की जिम्मेदारी है कि वे रिश्तों में गिरावट न आने दें, मतभेदों को सहमति और सहयोग की राह में बाधा न बनने दें.
इस दौरान हमने देखा कि हाल के दिनों में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने रूस से तेल खरीदने के नाम पर भारत के खिलाफ 50 फीसदी टैरिफ लगा दिया, जिससे भारतीय और अमेरिकी कंपनियों को नुकसान झेलना पड़ रहा है. अमेरिका का यह रवैया अन्य देशों के खिलाफ भी ऐसा ही रहा है. भारत से पहले अमेरिका ने चीन को भी टैरिफ़ लगाकर परेशान करने की कोशिश की, लेकिन चीन अमेरिका के आगे नहीं झुका, जबकि भारत ने भी रूस के साथ अपनी मित्रता और राष्ट्रीय हितों के साथ कोई समझौता नहीं किया.
ऐसे माहौल में एशिया की दो बड़ी आर्थिक शक्तियों के नेताओं का मिलना अमेरिका और पश्चिमी देशों के लिए बड़ा संकेत है. विशेष रूप से चीन, भारत और रूस अगर मिलकर सहयोग करते हैं तो यह सीधे-सीधे अमेरिका की बादशाहत को चुनौती होगी.
गौरतलब है कि एससीओ मंच एक मल्टीलेटरल फ़ोरम है, जहां विश्व के कई देशों को प्रतिनिधित्व मिल रहा है. इस मंच में शामिल देश न केवल जनसंख्या के तौर पर बड़ा स्थान रखते हैं, बल्कि वैश्विक जीडीपी में भी इनका काफी योगदान है. ऐसे में पश्चिम द्वारा इन देशों की आवाज को दबाने और चीन-भारत संबंधों को कमजोर करने की बार-बार कोशिश होती रही है. वर्तमान स्थिति में कहा जा सकता है कि चीन और भारत के बीच रिश्ते पटरी पर लौटने लगे हैं, जो कि विश्व अर्थव्यवस्था की स्थिरता और वैश्विक शांति के लिए अच्छी बात है.
(अनिल आज़ाद पांडेय, चाइना मीडिया ग्रुप, पेइचिंग)
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