नई दिल्ली: चीन लंबे समय से दक्षिण एशिया में अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिश कर रहा है। भारत और पाकिस्तान के बीच टेंशन की स्थिति चीन को इस क्षेत्र में मध्यस्थ या महत्वपूर्ण खिलाड़ी के रूप में खुद को पेश करने का अवसर दे सकती थी। इससे उसका राजनीतिक प्रभाव बढ़ सकता था। लेकिन, अमेरिका ने चीन को हाथ सेंकने का मौका नहीं दिया। उसने बीच में आकर भारत और पाकिस्तान के बीच के बीच संघर्ष विराम करा दिया। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इसके बारे में ऐलान किया। उन्होंने बताया कि दोनों देश तुरंत सीजफायर के लिए तैयार हो गए हैं। अगर यह तनाव बढ़ता तो चीन के लिए इस क्षेत्र में अपने आर्थिक संबंधों को मजबूत करने के अवसर खुल जाते। वह पाकिस्तान में अपने निवेश और बुनियादी ढांचा परियोजनाओं (जैसे सीपीईसी) को पहले से ही बढ़ा रहा है। इसमें और इजाफा हो सकता था। भारत-पाकिस्तान की लड़ाई वह बिना सीधे शरीक हुए हाथ सेंकने की फिराक में था। अभी चीन अमेरिका के साथ ट्रेड वॉर में उलझा हुआ है। भारत उसका क्षेत्र में सबसे बड़ा प्रतिद्वंद्वी है। ट्रंप की टैरिफ पॉलिसियों के कारण जो कंपनियां चीन को छोड़कर भारत का रुख कर रही हैं, तनाव बढ़ने की स्थिति में उनका भरोसा डगमगा सकता था। चीन को अमेरिका के साथ डील हो जाने का इंतजार है। इसकी संभावना बढ़ रही हैं। वहीं, पाकिस्तान के साथ तनाव लंबा खिंचने पर भारत को नुकसान होने के आसार थे। विदेशी निवेशकों में इसका अच्छा मैसेज नहीं जाता। अभी सीमा पार मिसाइल हमलों का इक्विटी, मुद्रा और बॉन्ड बाजारों पर तत्काल कोई खास असर नहीं हुआ है। कारण है कि व्यापक युद्ध की आशंका कम थी। विशेषज्ञों का पहले से ही मानना था कि अगर शत्रुता समाप्त हो जाती है तो निवेश के माहौल पर ज्यादा बुरा असर नहीं पड़ेगा। भारत और ब्रिटेन के बीच व्यापार समझौता हुआ है और अमेरिका के साथ भी इस तरह की बातचीत चल रही है। निवेश के माहौल को होता नुकसानसीजफायर के ऐलान से पहले ही मुंबई स्थित नुवामा ग्रुप के अजय मारवाह ने कहा था अगर व्यावहारिक रूप से शत्रुता खत्म हो जाती है तो निवेश के माहौल को नुकसान नहीं होगा। सिटीबैंक के विश्लेषकों ने भी कहा है कि पहले के संघर्षों का भारतीय संपत्तियों पर लंबे समय तक असर नहीं रहा है। फरवरी 2019 में पाकिस्तान के साथ तनाव के दौरान रुपया स्थिर रहा था। बॉन्ड यील्ड में 15 बेसिस पॉइंट्स की बढ़ोतरी हुई थी। लेकिन, बाद में यह सामान्य हो गया था। जून 2020 में गलवान घाटी में भारत और चीन के सैनिकों के बीच झड़प के बाद रुपया 1% कमजोर हुआ था। लेकिन, दोनों पक्षों के पीछे हटने के बाद यह फिर से मजबूत हो गया।अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की ओर से ट्रेड पार्टनर्स पर भारी शुल्क लगाने के बाद भी भारतीय बाजारों ने अच्छा प्रदर्शन किया है। जेनस हेंडरसन इन्वेस्टर्स के पोर्टफोलियो मैनेजर सत धुरा का कहना है कि घरेलू खपत की मजबूती और केंद्रीय बैंक की ओर से मौद्रिक नीति में ढील देने के संकेत के कारण भारतीय बाजार पर ट्रंप के टैरिफ का असर कम हुआ है। भारत सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था भारत की अर्थव्यवस्था 6.5% की विकास दर के साथ सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था बनी रहने की उम्मीद है। अप्रैल की शुरुआत से भारतीय शेयर बाजार दुनिया के सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाले बाजारों में से एक रहा है। इस दौरान निफ्टी50 में 4.6% की बढ़ोतरी हुई है। विदेशी निवेशकों ने पिछले साल अक्टूबर से इस साल मार्च तक भारतीय शेयरों की भारी बिकवाली की थी। लेकिन, अप्रैल और मई की शुरुआत में उन्होंने फिर से खरीदारी शुरू कर दी। लगभग 1.5 अरब डॉलर के शेयर खरीदे। हालांकि, वे भारतीय बॉन्ड के विक्रेता बने रहे। अप्रैल की शुरुआत से 1.7 अरब डॉलर के बॉन्ड बेच दिए। विश्लेषकों का कहना है कि फोकस व्यापार समझौतों पर है। भारत ने मंगलवार को ब्रिटेन के साथ एक लंबे समय से लंबित व्यापार समझौता किया है। अमेरिका के साथ भी द्विपक्षीय व्यापार समझौते पर बातचीत चल रही है।भारत में निवेश का बहुत अच्छा माहौल चीन की धुकधुकी बढ़ाता है। वह क्षेत्र में अपने वर्चस्व को बनाए रखना चाहता है। भारत की तेज रफ्तार उसे खटकती है। कारण है कि भारत दुनिया को चीन का विकल्प देने की ताकत रखता है। चीन के बाद वही एशिया की सबसे बड़ी महाशक्ति है। पाकिस्तान के साथ भारत उलझा रहता तो यह चीन को अपनी आर्थिक शक्ति बढ़ाने का मौका देता। सीजफायर के बाद इस तरह की संभावना पर विराम लग गया है।
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