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वोटर लिस्ट का आधार-मतदाता पहचान पत्र लिंक, चुनाव आयोग का कानून बदलने वाला प्लान क्या है?

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नई दिल्ली: चुनाव आयोग ने एक संसदीय पैनल को बताया कि सभी चुनावों के लिए एक समान मतदाता सूची के लिए कुछ चीजें जरूरी हैं। जैसे, एक तय तारीख, राज्यों द्वारा मतदाता सूची बनाने का एक जैसा तरीका, और पंचायत व नगर निगम के वार्डों के साथ विधानसभा क्षेत्रों का परिसीमन एक साथ करना। चुनाव आयोग द्वारा यह जानकारी तब सामने आई है जब बिहार में मतदाता सूचियों के विशेष गहन संशोधन की आलोचना हो रही है।



निर्वाचन आयोग ने संसदीय समिति को यह भी बताया कि मतदाताओं के लिए अपनी आधार जानकारी देने के लिए एक नया फॉर्म 6B बनाया गया है। हालांकि, आधार को वोटर आईडी से जोड़ना कानूनी रूप से मुश्किल है। आयोग सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों को देखते हुए आधार को वोटर आईडी और नामांकन फॉर्म से जोड़ने के नियमों में बदलाव करने पर विचार कर रहा है। आयोग ने यह भी कहा कि आधार को वोटर आईडी कार्ड से जोड़ना जरूरी नहीं है, यह सिर्फ आप अपनी मर्जी से जोड़ सकते हैं।



आयोग के सुझावों को समिति ने रिपोर्ट में किया शामिल

संसदीय स्थायी समिति ने चुनाव आयोग की इन सभी बातों को 'चुनाव प्रक्रिया के कुछ पहलू और उनमें सुधार' पर अपनी रिपोर्ट में शामिल किया है। आयोग ने संसदीय पैनल की एक समान मतदाता सूची की सिफारिश पर कहा कि वह 32 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के राज्य चुनाव आयुक्तों के साथ अपनी मतदाता सूची साझा करता है।



सभी राज्यों में एक जैसा होना चाहिए सूची बनाने की तरीका

आयोग ने कहा कि एक समान मतदाता सूची के लिए, "राज्य चुनाव आयोगों द्वारा मतदाता सूची बनाने का एक जैसा तरीका और एक तय तारीख होनी चाहिए। साथ ही, पंचायत और नगर निगम चुनावों के लिए वार्ड क्षेत्र के हिसाब से मतदान केंद्रों के भीतर सेक्शन की जानकारी तैयार की जानी चाहिए।



आयोग ने यह भी कहा कि पंचायत और नगर निगम के वार्डों का परिसीमन, जो अक्सर चुनावों के समय या हर जनगणना के बाद किया जाता है, उसे विधानसभा क्षेत्र के परिसीमन के साथ मिलाना होगा। साथ ही, सभी राज्यों में ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में वार्डों के नामकरण और नंबरिंग की एक जैसी प्रणाली होनी चाहिए।



कानून में संशोधन की चुनाव आयोग की सिफारिश

संसदीय पैनल की रिपोर्ट में कानून मंत्रालय ने कहा कि एक समान मतदाता सूची का मुद्दा 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' से जुड़ा हुआ है। चुनाव आयोग ने कहा कि उसने पहले ही यह सिफारिश कर दी है कि गलत जानकारी और हलफनामा देने वाले उम्मीदवारों को अयोग्य घोषित करने के लिए जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 में संशोधन किया जाए। कानून मंत्रालय ने कहा कि वह भविष्य में चुनावी सुधार करते समय इस सिफारिश पर विचार करेगा।
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