नई दिल्लीः दिल्ली स्थित केंद्र सरकार के राम मनोहर लोहिया (RML) अस्पताल में इन दिनों मरीजों से कहा जा रहा है कि वे अपने ऑपरेशन के लिए खुद सर्जिकल ग्लव्स और गाउन लेकर आएं। हादसों में घायल मरीजों के परिवारों का कहना है कि उन्हें बुनियादी सामान खरीदने पर हजारों रुपये खर्च करने पड़ रहे हैं, जो अस्पताल में उपलब्ध होना चाहिए था। यह अस्पताल मुफ्त इलाज का दावा करता है।
मुफ्त इलाज का खोखला दावा
कक्षा 6 में पढ़ने वाले गणेश नगर के 13 साल के एक छात्र का हाथ स्कूल में गिरने टूट गया, डॉक्टरों ने तत्काल सर्जरी की सलाह दी। लेकिन ऑपरेशन से ठीक पहले उसके पिता, जो अक्षरधाम मेट्रो स्टेशन के पास ठेला लगाते हैं, से 4,300 रुपये के दस्ताने और दूसरे सामान खरीदने को कहा गया। उन्होंने कहा, 'हम तो सोचते थे कि सरकारी अस्पताल में इलाज मुफ्त होगा। लेकिन यहां तो सूची पकड़ाकर सबकुछ बाहर से मंगवा लिया गया।'
गरीब मरीज दिल्ली आकर निराश हुए
इसी तरह, बलिया से आए 33 वर्षीय सुरक्षा गार्ड का भी अनुभव कुछ ऐसा ही रहा। जांघ की हड्डी में लगे असफल इम्प्लांट की वजह से वह महीनों से RML की ओपीडी में चक्कर लगा रहा था। शनिवार को आखिरकार उसकी सर्जरी हुई, लेकिन उससे पहले उसे 4,600 रुपये के ग्लव्स, गाउन और दवाइयां खुद खरीदनी पड़ीं। इसके अलावा 12,600 रुपये का नया इम्प्लांट भी अलग से खरीदना पड़ा। उसने कहा, 'मैं तो इस भरोसे से दिल्ली आया था कि केंद्रीय अस्पताल में मुफ्त इलाज होगा। लेकिन यहां तो सबकुछ खरीदना पड़ रहा है।'
ट्रॉमा OT में कई जरूरी चीजें खत्म
अस्पताल के अंदरूनी सूत्र मानते हैं कि RML के ट्रॉमा OT में कई जरूरी चीजें खत्म हो चुकी हैं, इसलिए मरीजों को उन्हें बाहर से लाना पड़ रहा है। इनमें सर्जिकल ग्लव्स, डिस्पोजेबल गाउन, IV फ्लूड, ऑक्सीजन मास्क, और जान बचाने वाली दवाएं जैसे हिपेरिन और सुक्सिनाइलकोलाइन शामिल हैं। यहां तक कि पट्टियां, कॉटन रोल, सर्जिकल हैंडवॉश और डिसइंफेक्टेंट जैसे हाइड्रोजन पेरॉक्साइड और सोडियम हाइपोक्लोराइट भी स्टोर में नहीं मिल रहे।
ऑपरेशन थिएटर में जरूरी सामान नहीं
डॉक्टरों के मुताबिक, यह कमी सिर्फ ट्रॉमा OT तक सीमित नहीं है, बल्कि अस्पताल के सभी ऑपरेशन थिएटर प्रभावित हैं। उन्होंने बताया कि दिक्कत धीमी खरीद प्रक्रिया की वजह से है। वहीं, RML प्रशासन का कहना है कि 'तुरंत जरूरतों के लिए अल्पकालिक खरीद की जा रही है और लंबे समय के लिए स्टॉक जुटाने की प्रक्रिया भी शुरू की गई है।'
मरीज आखिर जाएं कहां?
अस्पताल में हर दिन चार से पांच ट्रॉमा मरीजों की सर्जरी होती है। लेकिन पिछले एक महीने से सामान की कमी बनी हुई है। घायल मरीज और उनके परिवार, जो पहले ही कमाई और कामकाज गंवा चुके हैं, इन खर्चों से टूट रहे हैं। एक मरीज के परिजन ने निराशा जताते हुए कहा, 'अगर गरीबों को सरकारी अस्पताल में भी अपने दस्ताने और पट्टियां खुद खरीदनी पड़ें, तो वे आखिर जाएं कहां?'
मुफ्त इलाज का खोखला दावा
कक्षा 6 में पढ़ने वाले गणेश नगर के 13 साल के एक छात्र का हाथ स्कूल में गिरने टूट गया, डॉक्टरों ने तत्काल सर्जरी की सलाह दी। लेकिन ऑपरेशन से ठीक पहले उसके पिता, जो अक्षरधाम मेट्रो स्टेशन के पास ठेला लगाते हैं, से 4,300 रुपये के दस्ताने और दूसरे सामान खरीदने को कहा गया। उन्होंने कहा, 'हम तो सोचते थे कि सरकारी अस्पताल में इलाज मुफ्त होगा। लेकिन यहां तो सूची पकड़ाकर सबकुछ बाहर से मंगवा लिया गया।'
गरीब मरीज दिल्ली आकर निराश हुए
इसी तरह, बलिया से आए 33 वर्षीय सुरक्षा गार्ड का भी अनुभव कुछ ऐसा ही रहा। जांघ की हड्डी में लगे असफल इम्प्लांट की वजह से वह महीनों से RML की ओपीडी में चक्कर लगा रहा था। शनिवार को आखिरकार उसकी सर्जरी हुई, लेकिन उससे पहले उसे 4,600 रुपये के ग्लव्स, गाउन और दवाइयां खुद खरीदनी पड़ीं। इसके अलावा 12,600 रुपये का नया इम्प्लांट भी अलग से खरीदना पड़ा। उसने कहा, 'मैं तो इस भरोसे से दिल्ली आया था कि केंद्रीय अस्पताल में मुफ्त इलाज होगा। लेकिन यहां तो सबकुछ खरीदना पड़ रहा है।'
ट्रॉमा OT में कई जरूरी चीजें खत्म
अस्पताल के अंदरूनी सूत्र मानते हैं कि RML के ट्रॉमा OT में कई जरूरी चीजें खत्म हो चुकी हैं, इसलिए मरीजों को उन्हें बाहर से लाना पड़ रहा है। इनमें सर्जिकल ग्लव्स, डिस्पोजेबल गाउन, IV फ्लूड, ऑक्सीजन मास्क, और जान बचाने वाली दवाएं जैसे हिपेरिन और सुक्सिनाइलकोलाइन शामिल हैं। यहां तक कि पट्टियां, कॉटन रोल, सर्जिकल हैंडवॉश और डिसइंफेक्टेंट जैसे हाइड्रोजन पेरॉक्साइड और सोडियम हाइपोक्लोराइट भी स्टोर में नहीं मिल रहे।
ऑपरेशन थिएटर में जरूरी सामान नहीं
डॉक्टरों के मुताबिक, यह कमी सिर्फ ट्रॉमा OT तक सीमित नहीं है, बल्कि अस्पताल के सभी ऑपरेशन थिएटर प्रभावित हैं। उन्होंने बताया कि दिक्कत धीमी खरीद प्रक्रिया की वजह से है। वहीं, RML प्रशासन का कहना है कि 'तुरंत जरूरतों के लिए अल्पकालिक खरीद की जा रही है और लंबे समय के लिए स्टॉक जुटाने की प्रक्रिया भी शुरू की गई है।'
मरीज आखिर जाएं कहां?
अस्पताल में हर दिन चार से पांच ट्रॉमा मरीजों की सर्जरी होती है। लेकिन पिछले एक महीने से सामान की कमी बनी हुई है। घायल मरीज और उनके परिवार, जो पहले ही कमाई और कामकाज गंवा चुके हैं, इन खर्चों से टूट रहे हैं। एक मरीज के परिजन ने निराशा जताते हुए कहा, 'अगर गरीबों को सरकारी अस्पताल में भी अपने दस्ताने और पट्टियां खुद खरीदनी पड़ें, तो वे आखिर जाएं कहां?'
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