मुंबई: महानगर में हर घंटे औसतन 2 ब्रेन स्ट्रोक के मामले रिपोर्ट होने की बात डॉक्टरों ने कही है। चिंता का विषय यह है कि अब भी लोगों में स्ट्रोक के लक्षण को लेकर जागरूकता की कमी है, नतीजतन 90% लोग अब भी गोल्डन पीरियड निकल जाने के बाद अस्पताल पहुंचते हैं। देर होने से लोगों को न्यूरोलॉजिकल क्षति होती है और कई लोग अस्थाई, तो काफी लोगों को स्थाई विकलांगता के साथ जीना पड़ता है। ऐसे में, डॉक्टरों ने लोगों को स्ट्रोक के लक्षण को पहचाने और सही समय पर इलाज लेने की अपील की है।
मुंबई में ब्रेन स्ट्रोक के बढ़ते खतरे को लेकर चिंतित मुंबई के विशेषज्ञों ने समय पर इलाज मिलने पर मरीज की जान और जीवन की गुणवत्ता बचाई जाने की बात कही। इसी उद्देश्य से सेरेब्रोवैस्कुलर सोसायटी ऑफ़ इंडिया (CVSI) ने शुक्रवार को न्यूरोवैस्कॉन 2025 का आयोजन किया गया। इस दौरान केईएम हॉस्पिटल की डीन एवं वरिष्ठ न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. संगीता रावत ने कहा कि भारत में रोज़ाना लगभग 3,000 स्ट्रोक के मामले सामने आते हैं, और मुंबई जैसे महानगरों में भी यह संख्या चौंकाने वाली है। हमारे अनुभव में सिर्फ परेल इलाके में ही 8–10 स्ट्रोक केस प्रतिदिन आ जाते हैं। चिंता यह है कि करीब 90% मरीज समय पर अस्पताल नहीं पहुंच पाते।
डॉक्टरों ने कया कहा
डॉ. रावत के अनुसार स्ट्रोक के लक्षण शुरू होते ही पहले साढ़े तीन से चार घंटे बेहद अहम होते हैं, जिसे ‘गोल्डन पीरियड’ कहा जाता है। मरीज जितनी देर से आता है, उतनी ज़्यादा मस्तिष्क की कोशिकाएं मरती हैं और नुकसान स्थायी हो सकता है। हर मिनट लाखों न्यूरॉन्स नष्ट हो जाते हैं, जिससे रिकवरी की संभावना कम होती जाती है।
कम जागरूकता उपचार में देरी का बड़ा कारण
न्यूरोवैस्कॉन के ऑर्गनाइजिंग सेक्रेटरी और न्यूरो सर्जन डॉ. बटुक दियोरा ने कहा कि इस्केमिक स्ट्रोक तब होता है, जब दिमाग को खून पहुंचाने वाली धमनी रक्त के थक्के से ब्लॉक हो जाती है। इससे ऑक्सीजन की आपूर्ति घटती है और मस्तिष्क की कोशिकाएं मर जाती हैं। जबकि, हेमरेजिक स्ट्रोक मस्तिष्क की धमनी फटने से होता है, जो अक्सर हाई ब्लड प्रेशर से होता है। स्ट्रोक के प्रति कम जागरूकता उपचार में देरी का बड़ा कारण है।
मुंबई में ब्रेन स्ट्रोक के बढ़ते खतरे को लेकर चिंतित मुंबई के विशेषज्ञों ने समय पर इलाज मिलने पर मरीज की जान और जीवन की गुणवत्ता बचाई जाने की बात कही। इसी उद्देश्य से सेरेब्रोवैस्कुलर सोसायटी ऑफ़ इंडिया (CVSI) ने शुक्रवार को न्यूरोवैस्कॉन 2025 का आयोजन किया गया। इस दौरान केईएम हॉस्पिटल की डीन एवं वरिष्ठ न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. संगीता रावत ने कहा कि भारत में रोज़ाना लगभग 3,000 स्ट्रोक के मामले सामने आते हैं, और मुंबई जैसे महानगरों में भी यह संख्या चौंकाने वाली है। हमारे अनुभव में सिर्फ परेल इलाके में ही 8–10 स्ट्रोक केस प्रतिदिन आ जाते हैं। चिंता यह है कि करीब 90% मरीज समय पर अस्पताल नहीं पहुंच पाते।
डॉक्टरों ने कया कहा
डॉ. रावत के अनुसार स्ट्रोक के लक्षण शुरू होते ही पहले साढ़े तीन से चार घंटे बेहद अहम होते हैं, जिसे ‘गोल्डन पीरियड’ कहा जाता है। मरीज जितनी देर से आता है, उतनी ज़्यादा मस्तिष्क की कोशिकाएं मरती हैं और नुकसान स्थायी हो सकता है। हर मिनट लाखों न्यूरॉन्स नष्ट हो जाते हैं, जिससे रिकवरी की संभावना कम होती जाती है।
कम जागरूकता उपचार में देरी का बड़ा कारण
न्यूरोवैस्कॉन के ऑर्गनाइजिंग सेक्रेटरी और न्यूरो सर्जन डॉ. बटुक दियोरा ने कहा कि इस्केमिक स्ट्रोक तब होता है, जब दिमाग को खून पहुंचाने वाली धमनी रक्त के थक्के से ब्लॉक हो जाती है। इससे ऑक्सीजन की आपूर्ति घटती है और मस्तिष्क की कोशिकाएं मर जाती हैं। जबकि, हेमरेजिक स्ट्रोक मस्तिष्क की धमनी फटने से होता है, जो अक्सर हाई ब्लड प्रेशर से होता है। स्ट्रोक के प्रति कम जागरूकता उपचार में देरी का बड़ा कारण है।
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