ज्योतिष की दृष्टि से देखा जाए तो छाया ग्रह केतु की आकृति सिर विहीन है, अर्थात् गर्दन के नीचे के भाग का अधिकारी केतु है। यद्यपि राहु की भांति केतु भी सौरमंडल में विचरण करने वाला कोई आकाशीय पिंड नहीं है, परन्तु भारतीय ज्योतिष में इसे भी नवग्रहों की श्रेणी में रखा गया है। इसका स्वभाव तमोगुण है, केतु को शास्त्रों का अधिनायक माना गया है। इससे चर्म रोग या गुप्त षडयंत्र आदि का विचार किया जाता है।
राहु का विशेष फल 42 से 48 वर्ष के भीतर तथा केतु का फल 48 से 52 वर्ष में होता है। शरीर के अंगों को छोड़कर केतु में प्रायः वे सब गुण-दोष होते हैं, जो कि मंगल में होते हैं, इसलिए इसे कुजवत् केतु कहा गया है। केतु को मोक्ष सहित उच्च ज्ञान का प्रतिनिधि माना जाता है। केतु शब्द का अर्थ है, ज्ञान, रूप, धन, सम्मान, ध्वजा। इसी कारण किसी कुंडली में योगकारक या शुभफलदाता ग्रह के साथ बैठने पर यह खुद भी अच्छी बातों को बढ़ावा देता है। जब छाया ग्रह केतु का सम्बन्ध अशुभ फल देने वाले ग्रह से हो जाए तो यह अशुभता को बढ़ा देता है। राहु की भांति केतु की गणना भी पाप ग्रहों में की जाती है, केतु के प्रभाव से भी व्यक्ति को नाना प्रकार की कठिनाइयों से जूझना पड़ता है।
कब होते हैं राहु-केतु कुपित- प्राचीन लाल किताब के अनुसार पैर फैलाकर खाना, खाने के बाद पेट पर हाथ फेरना, थाली में जूठा भोजन छोड़ना, थाली में ही कुल्ला करना, दूसरों की तरक्की देखकर प्रसन्न न होना, मन, वचन व कर्म से हिंसक बने रहना आदि बातों से राहु व केतु कुपित होते हैं।
केतु का शुभ-अशुभ दशा फल- प्रसिद्ध ज्योतिष ग्रंथ जातक पारिजात के अनुसार केतु की अशुभ दशा जातक को भाग्य के हाथों की कठपुतली बना देती है, दुर्भाग्य उसे खूब नचाता है। ऐसा व्यक्ति देह व्याधि, कष्ट और क्लेश से दुःख प्राप्त करता है। इसके विपरीत शुभ ग्रहों से दृष्ट या युक्त केतु की दशा स्वास्थ्य, सम्मान, सुख और पुण्य लाभ देती है। बृहत्पराशर होरा शास्त्र के अनुसार त्रिषडाय यानि 3, 6, 11 वें भाव में स्थित केतु अपनी दशा में बल, प्रताप की वृद्धि तथा उच्चाधिकार प्रदान करता है।
राहु का विशेष फल 42 से 48 वर्ष के भीतर तथा केतु का फल 48 से 52 वर्ष में होता है। शरीर के अंगों को छोड़कर केतु में प्रायः वे सब गुण-दोष होते हैं, जो कि मंगल में होते हैं, इसलिए इसे कुजवत् केतु कहा गया है। केतु को मोक्ष सहित उच्च ज्ञान का प्रतिनिधि माना जाता है। केतु शब्द का अर्थ है, ज्ञान, रूप, धन, सम्मान, ध्वजा। इसी कारण किसी कुंडली में योगकारक या शुभफलदाता ग्रह के साथ बैठने पर यह खुद भी अच्छी बातों को बढ़ावा देता है। जब छाया ग्रह केतु का सम्बन्ध अशुभ फल देने वाले ग्रह से हो जाए तो यह अशुभता को बढ़ा देता है। राहु की भांति केतु की गणना भी पाप ग्रहों में की जाती है, केतु के प्रभाव से भी व्यक्ति को नाना प्रकार की कठिनाइयों से जूझना पड़ता है।
कब होते हैं राहु-केतु कुपित- प्राचीन लाल किताब के अनुसार पैर फैलाकर खाना, खाने के बाद पेट पर हाथ फेरना, थाली में जूठा भोजन छोड़ना, थाली में ही कुल्ला करना, दूसरों की तरक्की देखकर प्रसन्न न होना, मन, वचन व कर्म से हिंसक बने रहना आदि बातों से राहु व केतु कुपित होते हैं।
केतु का शुभ-अशुभ दशा फल- प्रसिद्ध ज्योतिष ग्रंथ जातक पारिजात के अनुसार केतु की अशुभ दशा जातक को भाग्य के हाथों की कठपुतली बना देती है, दुर्भाग्य उसे खूब नचाता है। ऐसा व्यक्ति देह व्याधि, कष्ट और क्लेश से दुःख प्राप्त करता है। इसके विपरीत शुभ ग्रहों से दृष्ट या युक्त केतु की दशा स्वास्थ्य, सम्मान, सुख और पुण्य लाभ देती है। बृहत्पराशर होरा शास्त्र के अनुसार त्रिषडाय यानि 3, 6, 11 वें भाव में स्थित केतु अपनी दशा में बल, प्रताप की वृद्धि तथा उच्चाधिकार प्रदान करता है।
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