नई दिल्ली: चीन ने अमेरिका को गैलियम, जर्मेनियम, एंटीमनी और सुपर-हार्ड मटेरियल से जुड़े दोहरे उपयोग वाले सामानों के निर्यात पर लगी रोक को फिलहाल टाल दिया है। यह रोक रविवार से 27 नवंबर 2026 तक प्रभावी रहेगी। चीन के वाणिज्य मंत्रालय ने यह जानकारी दी है। मंत्रालय ने इस बारे में कोई और जानकारी नहीं दी है। चीन ने दिसंबर 2024 में इस तरह की रोक लगाने की घोषणा की थी। चीन की ओर से अमेरिका के लिए गैलियम और जर्मेनियम जैसे 'डुअल-यूज' खनिजों पर निर्यात प्रतिबंध हटाने के फैसले का भारत पर अल्पकालिक आर्थिक राहत और दीर्घकालिक रणनीतिक चुनौती के रूप में दोहरा असर पड़ेगा।
इसके पहले चीन ने शुक्रवार को कुछ रेयर अर्थ (दुर्लभ पृथ्वी सामग्री) और लिथियम बैटरी सामग्री पर लगाए गए निर्यात प्रतिबंधों को भी निलंबित कर दिया था। ये प्रतिबंध 9 अक्टूबर को लागू किए गए थे।
यह कदम चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच हुए समझौते के बाद आया है। दोनों नेताओं ने एक साल के लिए टैरिफ कम करने और अन्य व्यापारिक उपायों को रोकने पर सहमति जताई थी।
क्यों महत्वपूर्ण हैं ये मटेरियल?गैलियम और जर्मेनियम जैसे पदार्थ सेमीकंडक्टर बनाने में इस्तेमाल होते हैं। ये चिप्स कंप्यूटर, फोन और अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के लिए बहुत जरूरी हैं। सुपर-हार्ड मटेरियल का इस्तेमाल कई उद्योगों में होता है। दोहरे उपयोग वाले सामान वे होते हैं जिनका नागरिक और सैन्य दोनों तरह के कामों में इस्तेमाल हो सकता है।
चीन दुनिया में इन महत्वपूर्ण सामग्रियों का एक प्रमुख उत्पादक है। इसलिए इन पर निर्यात प्रतिबंध लगाने से ग्लोबल सप्लाई चेन प्रभावित हो सकती थी। इस रोक को टालने से अमेरिका और चीन के बीच व्यापारिक तनाव कम होने की उम्मीद है। यह दोनों देशों के बीच चल रही व्यापार वार्ता के लिए भी एक सकारात्मक संकेत है।
भारत पर कैसे होगा असर?चूंकि चीन इन खनिजों का विश्व का सबसे बड़ा उत्पादक है, यह निलंबन वैश्विक बाजार में गैलियम और जर्मेनियम की सप्लाई को स्थिर करेगा। इससे इन खनिजों की कीमतों में बढ़ोतरी का खतरा कम होगा। भारत अपनी सेमीकंडक्टर, फाइबर ऑप्टिक्स और सौर पैनल उद्योगों की जरूरतों के लिए इन खनिजों के आयात पर लगभग 100% निर्भर है। ऐसे में सप्लाई चेन में आई यह टेम्परेरी स्थिरता भारतीय मैन्युफैक्चरर्स के लिए कच्चे माल की लागत पर दबाव को कम करने और आयात प्रक्रिया को आसान बनाने में मदद करेगी। यह कदम अमेरिका और चीन के बीच चल रहे 'टेक-टेंशन' में भी एक अस्थायी नरमी लाता है। इसका सकारात्मक असर ग्लोबल व्यापार माहौल पर पड़ सकता है।
लॉन्ग-टर्म चैलेंज यह है कि चीन ने इन महत्वपूर्ण खनिजों को भू-राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल करने की अपनी क्षमता को एक बार फिर साबित कर दिया है। कारण है कि यह निलंबन केवल अस्थायी (नवंबर 2026 तक) है। यह अनिश्चितता भारत के 'आत्मनिर्भर भारत' और 'सेमीकंडक्टर मिशन' के लिए एक गंभीर खतरे के रूप में सामने आती है। यह फैसला भारत पर रणनीतिक आत्मनिर्भरता हासिल करने की अपनी योजनाओं को और भी तेजी से लागू करने का दबाव डालता है। भारत को अब राष्ट्रीय महत्वपूर्ण खनिज मिशन (एनसीएमएम) जैसी पहलों के जरिये गैलियम और जर्मेनियम जैसे खनिजों के घरेलू एक्सट्रैक्शन और प्रसंस्करण में निवेश बढ़ाना होगा ताकि वह भविष्य में चीन की निर्यात नियंत्रण नीतियों से होने वाले किसी भी संभावित सप्लाई व्यवधान के प्रति अपनी संवेदनशीलता को कम कर सके।
इसके पहले चीन ने शुक्रवार को कुछ रेयर अर्थ (दुर्लभ पृथ्वी सामग्री) और लिथियम बैटरी सामग्री पर लगाए गए निर्यात प्रतिबंधों को भी निलंबित कर दिया था। ये प्रतिबंध 9 अक्टूबर को लागू किए गए थे।
यह कदम चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच हुए समझौते के बाद आया है। दोनों नेताओं ने एक साल के लिए टैरिफ कम करने और अन्य व्यापारिक उपायों को रोकने पर सहमति जताई थी।
क्यों महत्वपूर्ण हैं ये मटेरियल?गैलियम और जर्मेनियम जैसे पदार्थ सेमीकंडक्टर बनाने में इस्तेमाल होते हैं। ये चिप्स कंप्यूटर, फोन और अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के लिए बहुत जरूरी हैं। सुपर-हार्ड मटेरियल का इस्तेमाल कई उद्योगों में होता है। दोहरे उपयोग वाले सामान वे होते हैं जिनका नागरिक और सैन्य दोनों तरह के कामों में इस्तेमाल हो सकता है।
चीन दुनिया में इन महत्वपूर्ण सामग्रियों का एक प्रमुख उत्पादक है। इसलिए इन पर निर्यात प्रतिबंध लगाने से ग्लोबल सप्लाई चेन प्रभावित हो सकती थी। इस रोक को टालने से अमेरिका और चीन के बीच व्यापारिक तनाव कम होने की उम्मीद है। यह दोनों देशों के बीच चल रही व्यापार वार्ता के लिए भी एक सकारात्मक संकेत है।
भारत पर कैसे होगा असर?चूंकि चीन इन खनिजों का विश्व का सबसे बड़ा उत्पादक है, यह निलंबन वैश्विक बाजार में गैलियम और जर्मेनियम की सप्लाई को स्थिर करेगा। इससे इन खनिजों की कीमतों में बढ़ोतरी का खतरा कम होगा। भारत अपनी सेमीकंडक्टर, फाइबर ऑप्टिक्स और सौर पैनल उद्योगों की जरूरतों के लिए इन खनिजों के आयात पर लगभग 100% निर्भर है। ऐसे में सप्लाई चेन में आई यह टेम्परेरी स्थिरता भारतीय मैन्युफैक्चरर्स के लिए कच्चे माल की लागत पर दबाव को कम करने और आयात प्रक्रिया को आसान बनाने में मदद करेगी। यह कदम अमेरिका और चीन के बीच चल रहे 'टेक-टेंशन' में भी एक अस्थायी नरमी लाता है। इसका सकारात्मक असर ग्लोबल व्यापार माहौल पर पड़ सकता है।
लॉन्ग-टर्म चैलेंज यह है कि चीन ने इन महत्वपूर्ण खनिजों को भू-राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल करने की अपनी क्षमता को एक बार फिर साबित कर दिया है। कारण है कि यह निलंबन केवल अस्थायी (नवंबर 2026 तक) है। यह अनिश्चितता भारत के 'आत्मनिर्भर भारत' और 'सेमीकंडक्टर मिशन' के लिए एक गंभीर खतरे के रूप में सामने आती है। यह फैसला भारत पर रणनीतिक आत्मनिर्भरता हासिल करने की अपनी योजनाओं को और भी तेजी से लागू करने का दबाव डालता है। भारत को अब राष्ट्रीय महत्वपूर्ण खनिज मिशन (एनसीएमएम) जैसी पहलों के जरिये गैलियम और जर्मेनियम जैसे खनिजों के घरेलू एक्सट्रैक्शन और प्रसंस्करण में निवेश बढ़ाना होगा ताकि वह भविष्य में चीन की निर्यात नियंत्रण नीतियों से होने वाले किसी भी संभावित सप्लाई व्यवधान के प्रति अपनी संवेदनशीलता को कम कर सके।
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