US Tariff on Indian IT Sector: भारत और अमेरिका के रिश्तों में इस वक्त खटास आ गई है। इसकी मुख्य वजह राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की सरकार के जरिए भारत पर टैरिफ लगाना है। अभी तक इस टैरिफ के असर से भारत की आईटी इंडस्ट्री बाहर है, लेकिन अमेरिका से जिस तरह के बयान सामने आ रहे हैं, उसने टेंशन जरूर बढ़ा दी है। ट्रंप के वरिष्ठ व्यापार सलाहकार और टैरिफ समर्थक पीटर नवारो ने एक्स पर एक ऐसी पोस्ट को रिपोस्ट किया है, जिसने डिजिटल टैरिफ की आशंकाओं को जन्म दिया है।
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दक्षिणपंथी एक्टिविस्ट और अमेरिकी नौसेना के पूर्व खुफिया अधिकारी जैक पोसोबिएक ने एक्स पर एक पोस्ट किया। इसमें उन्होंने कहा, 'विदेशी रिमोट वर्कर्स पर टैरिफ लगाएं। आउटसोर्सिंग पर भी टैरिफ लगाया जाना चाहिए। देशों को अमेरिका को रिमोटली सर्विस प्रदान करने के विशेषाधिकार के लिए उसी तरह टैरिफ देना चाहिए, जैसे वस्तुओं पर देना होता है।' पीटर नवारो ने इस पोस्ट को रिपोस्ट किया है। ऐसा लगने लगा है कि कहीं अब भारत की आईटी इंडस्ट्री पर भी टैरिफ ना लगा दिया जाए।
अब यहां सवाल उठता है कि अगर भारत की आईटी इंडस्ट्री पर टैरिफ लगाया जाता है, जो भारतीय टेक वर्कर्स का भविष्य क्या होगा। इसमें भारत और अमेरिका दोनों जगहों पर काम करने वाले टेक वर्कर्स शामिल हैं। आइए इसका जवाब जानते हैं।
किन भारतीय टेक वर्कर्स को सबसे ज्यादा खतरा?
अगर अमेरिका आईटी इंडस्ट्री पर टैरिफ लगाता है तो सबसे ज्यादा खतरा भारत में काम करने वाले टेक वर्कर्स को होगा। टैरिफ लगने के बाद अमेरिकी कंपनियों के लिए भारत में काम करवाना महंगा हो जाएगा। जैसे अगर पहले कोई कॉन्ट्रैक्ट 10 मिलियन डॉलर का था, तो अब वह 12 मिलियन डॉलर का हो जाएगा। अमेरिकी कंपनियों को यहां काम करवाना महंगा होगा, तो वे अपने प्रोजेक्ट भारत से निकालकर दूसरे देशों में शिफ्ट कर देंगे। ऐसी स्थिति में भारतीय कंपनियों के पास काम कम हो जाएगा और भारत में छंटनी शुरू हो जाएगी।
अमेरिका का टैरिफ 283 बिलियन डॉलर वाले भारत की आईटी आउटसोर्सिंग सेक्टर को बुरी तरह प्रभावित कर देगा, क्योंकि ज्यादातर काम यूएस से ही आता है। टैरिफ की वजह से हायरिंग रुक सकती है, प्रमोशन रोके जा सकते हैं। बेंच स्ट्रेंथ बढ़ सकती है, क्योंकि कम अमेरिकी प्रोजेक्ट आएंगे। सबसे ज्यादा दिक्कत भारतीय फ्रेशर्स को होगी, क्योंकि उन्हें आसानी से जॉब नहीं मिलेगी। आसान शब्दों में कहें तो जो टेक वर्कर भारत में रहकर अमेरिकी क्लाइंट्स के लिए काम करते हैं, उनके लिए काफी ज्यादा दिक्कतें होंगी, क्योंकि उन्हें आसानी से जॉब नहीं मिलेगी।
किन भारतीय टेक वर्कर्स को कम खतरा होगा?
H-1B और L-1 वीजा पर अमेरिका में काम कर रहे भारतीय टेक वर्कर्स के लिए चीजें ज्यादा पेचीदा हैं। उनके ऊपर टैरिफ का सीधा असर नहीं दिखेगा, क्योंकि उनकी सर्विस अमेरिका में ही ली जा रही है। अगर टैरिफ की वजह से भारत-अमेरिका आईटी साझेदारी की कुल लागत बढ़ जाती है, तो अमेरिकी क्लाइंट अपने बजट में कटौती कर सकते हैं। इस वजह से कॉन्ट्रैक्ट रिन्यूअल और ऑनसाइट प्लेसमेंट प्रभावित हो सकते हैं।
टैरिफ का एक फायदा भी होगा कि अमेरिकी कंपनियां भारतीय टेक वर्कर्स को सीधे अपने यहां हायर कर सकती हैं। इसकी वजह से अमेरिका में भारतीय प्रोफेशनल की डिमांड भी बढ़ सकती है। कुल मिलाकर ये कहा जा सकता है कि टैरिफ के बाद अमेरिका में काम करने के अवसर खुल सकते हैं, लेकिन फिर ये देखना होगा कि क्या अमेरिकी कंपनियां भारतीयों को हायर करती हैं या नहीं। अमेरिकी कंपनियां भारतीय स्टूडेंट्स को भी देश में जॉब दे सकती हैं।
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दक्षिणपंथी एक्टिविस्ट और अमेरिकी नौसेना के पूर्व खुफिया अधिकारी जैक पोसोबिएक ने एक्स पर एक पोस्ट किया। इसमें उन्होंने कहा, 'विदेशी रिमोट वर्कर्स पर टैरिफ लगाएं। आउटसोर्सिंग पर भी टैरिफ लगाया जाना चाहिए। देशों को अमेरिका को रिमोटली सर्विस प्रदान करने के विशेषाधिकार के लिए उसी तरह टैरिफ देना चाहिए, जैसे वस्तुओं पर देना होता है।' पीटर नवारो ने इस पोस्ट को रिपोस्ट किया है। ऐसा लगने लगा है कि कहीं अब भारत की आईटी इंडस्ट्री पर भी टैरिफ ना लगा दिया जाए।
अब यहां सवाल उठता है कि अगर भारत की आईटी इंडस्ट्री पर टैरिफ लगाया जाता है, जो भारतीय टेक वर्कर्स का भविष्य क्या होगा। इसमें भारत और अमेरिका दोनों जगहों पर काम करने वाले टेक वर्कर्स शामिल हैं। आइए इसका जवाब जानते हैं।
किन भारतीय टेक वर्कर्स को सबसे ज्यादा खतरा?
अगर अमेरिका आईटी इंडस्ट्री पर टैरिफ लगाता है तो सबसे ज्यादा खतरा भारत में काम करने वाले टेक वर्कर्स को होगा। टैरिफ लगने के बाद अमेरिकी कंपनियों के लिए भारत में काम करवाना महंगा हो जाएगा। जैसे अगर पहले कोई कॉन्ट्रैक्ट 10 मिलियन डॉलर का था, तो अब वह 12 मिलियन डॉलर का हो जाएगा। अमेरिकी कंपनियों को यहां काम करवाना महंगा होगा, तो वे अपने प्रोजेक्ट भारत से निकालकर दूसरे देशों में शिफ्ट कर देंगे। ऐसी स्थिति में भारतीय कंपनियों के पास काम कम हो जाएगा और भारत में छंटनी शुरू हो जाएगी।
अमेरिका का टैरिफ 283 बिलियन डॉलर वाले भारत की आईटी आउटसोर्सिंग सेक्टर को बुरी तरह प्रभावित कर देगा, क्योंकि ज्यादातर काम यूएस से ही आता है। टैरिफ की वजह से हायरिंग रुक सकती है, प्रमोशन रोके जा सकते हैं। बेंच स्ट्रेंथ बढ़ सकती है, क्योंकि कम अमेरिकी प्रोजेक्ट आएंगे। सबसे ज्यादा दिक्कत भारतीय फ्रेशर्स को होगी, क्योंकि उन्हें आसानी से जॉब नहीं मिलेगी। आसान शब्दों में कहें तो जो टेक वर्कर भारत में रहकर अमेरिकी क्लाइंट्स के लिए काम करते हैं, उनके लिए काफी ज्यादा दिक्कतें होंगी, क्योंकि उन्हें आसानी से जॉब नहीं मिलेगी।
किन भारतीय टेक वर्कर्स को कम खतरा होगा?
H-1B और L-1 वीजा पर अमेरिका में काम कर रहे भारतीय टेक वर्कर्स के लिए चीजें ज्यादा पेचीदा हैं। उनके ऊपर टैरिफ का सीधा असर नहीं दिखेगा, क्योंकि उनकी सर्विस अमेरिका में ही ली जा रही है। अगर टैरिफ की वजह से भारत-अमेरिका आईटी साझेदारी की कुल लागत बढ़ जाती है, तो अमेरिकी क्लाइंट अपने बजट में कटौती कर सकते हैं। इस वजह से कॉन्ट्रैक्ट रिन्यूअल और ऑनसाइट प्लेसमेंट प्रभावित हो सकते हैं।
टैरिफ का एक फायदा भी होगा कि अमेरिकी कंपनियां भारतीय टेक वर्कर्स को सीधे अपने यहां हायर कर सकती हैं। इसकी वजह से अमेरिका में भारतीय प्रोफेशनल की डिमांड भी बढ़ सकती है। कुल मिलाकर ये कहा जा सकता है कि टैरिफ के बाद अमेरिका में काम करने के अवसर खुल सकते हैं, लेकिन फिर ये देखना होगा कि क्या अमेरिकी कंपनियां भारतीयों को हायर करती हैं या नहीं। अमेरिकी कंपनियां भारतीय स्टूडेंट्स को भी देश में जॉब दे सकती हैं।
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