अमरोहा। मीलों का फासला, परिवार के गुजर-बसर की मजबूरी और महीनों तक ना फोन, ना कोई बातचीत। तीज-त्योहार पर मुलाकात हो गई तो ठीक, वरना वो भी मयस्सर नहीं। फोन पर ही एक-दूसरे को बधाई देकर, त्योहार की खनक दोनों की बातों में घुल जाती थी। अक्सर मिलने का तगादा भी उठता, लेकिन फिर कुछ ना कुछ मजबूरी बीच में आकर उस मुलाकात के इंतजार को बढ़ा देती। फिर भी... उन दोनों की दोस्ती जिंदा थी, जवां थी, शिकायतों की कोई जगह नहीं। दोनों के दिलों में एहसास था कि दोस्ती कायम है। लेकिन, इसी दोस्ती को लाल किले की उस शाम ने छीन लिया, जो चंद मिनटों के लिए दोनों की आखिरी मुलाकात की गवाह बनी।
उत्तर प्रदेश के अमरोहा जिले में रहने वाले अशोक और लोकेश, उन 12 लोगों में शामिल हैं, जिनकी जिंदगियां दिल्ली कार ब्लास्ट में खत्म हो गई। सोमवार को लोकश सर गंगाराम हॉस्पिटल में भर्ती अपने एक रिश्तेदार से मिलने के लिए दिल्ली आए थे। हाल-चाल लेने के बाद, शाम को लोकेश वापस अमरोहा के लिए निकलने ही वाले थे, तो सोचा कि क्यों ना एक बार अशोक से बात कर लूं। दिल्ली के वजीराबाद में रह रहे अशोक डीटीसी बस में कंडक्टर थे। दोस्त का फोन आया तो रहा ना गया और कहा कि वो उसे लेने मेट्रो स्टेशन आ रहे हैं। ज्यादा कुछ नहीं, तो चंद मिनट साथ बैठकर एक-एक कप चाय ही पी लेंगे।
कुछ ही देर में अशोक लाल किला मेट्रो स्टेशन पहुंच गए। मुलाकात हुई, एक-दूसरे का हाल-चाल लिया और अशोक की बाइक पर बैठकर दोनों वजीराबाद के लिए निकले पड़े। काम-धंधे की बातें, बच्चों और गांव-गलियों के किस्से शुरू होते, उससे पहले ही एक तेज धमाका हुआ और दोनों की ये मुलाकात 'मौत की मुलाकात' बन गई। कार धमाके की चपेट में आए अशोक और लोकेश ने मौके पर ही दम तोड़ दिया। गांव में दोनों की मौत की खबर पहुंची तो कोहराम मच गया।
परिजन बताते हैं कि अशोक और लोकेश ने महीनों से एक-दूसरे को नहीं देखा था, लेकिन उनकी दोस्ती मुलाकात की मोहताज नहीं थी। अमरोहा के हसनपुर की गलियों से निकलकर, दिल्ली की भागदौड़ भरी जिंदगी तक... वे कभी-कभार फोन करके, कभी त्योहारों की बधाई देकर, तो कभी महज मिलने का वादा करके ही, एक दूसरे संपर्क में रहे। मंगलवार दोपहर को सफेद कपड़े में लिपटी, दोनों की लाशें अमरोहा में उन्हीं गलियों से वापस घर पहुंचीं, जिन गलियों में दोनों अक्सर मिला करते थे।
हाथ पर ओम का टैटू देखकर पहचानाअशोक का परिवार हसनपुर के मंगरौला गांव में रहता है। मायूसी और सदमे से भरे माहौल में, अशोक की पत्नी सोनम अपने तीन साल के बेटे आरंभ को गोद में लिए अर्थी के पास बैठी थीं। दोनों बेटियां, 8 साल की आरोही और 5 साल की काव्या भी उनके पास खड़ी थीं। अशोक की 85 वर्षीय मां सोमवती दिल की मरीज हैं। आंसुओं से भरी आंखों से उन्होंने बताया कि दिवाली पर ही अशोक घर आए थे। उनके भाई सोमपाल सिंह ने कहा, 'वो कहकर गया था कि जल्द ही फिर आएगा। उसने अपना वादा तो निभाया, लेकिन वो इस तरह लौटेगा, ये नहीं सोचा था।'
बड़ी मुश्किल से अपने आंसुओं को रोकते हुए अशोक के एक रिश्तेदार विजय ने उस मंजर को बयां करते हुए बताया, 'उसने डीटीसी की अपनी वर्दी पहन रखी थी और उसके हाथ पर ओम का टैटू था। इन्हीं दोनों से हमने अशोक की लाश को पहचाना। परिवार का पेट पालने वाले अशोक अकेले थे, अब घर चलाने वाला कोई नहीं बचा। इस धमाके ने पूरे परिवार की जिंदगी में अंधेरा कर दिया।'
उसने कहा, बस दोस्त से मिल लेता हूं...हसनपुर में ही कुछ दूरी पर लोकेश के घर का आंगन रिश्तेदारों से भरा हुआ था। सबके पास उसकी कुछ ना कुछ यादें हैं। लोकेश ने अकेले ही अपने तीन बच्चों को पाला था। एक बेटा सौरभ देहरादून में वैज्ञानिक है, दूसरा बेटा गौरव इलेक्ट्रिकल इंजीनियर और बेटी दिव्या की शादी हो चुकी है। उस शाम लोकेश को मेट्रो स्टेशन के पास छोड़ने वाले उनके चचेरे भाई वागीश बताते हैं, 'दोस्ती की गहराई को उसने कभी कम नहीं होने दिया, मैंने कहा था उससे कि काफी देर हो रही है, लेकिन वो नहीं माना। उसने कहा कि बस मिल लेता हूं और कुछ ही घंटों बाद दिल्ली पुलिस का फोन आ गया।
अगले दिन जब अशोक और लोकेश की लाशों को लिए, उनके ताबूत अमरोहा पहुंचे तो गांव का शोक विरोध में तब्दील हो गया। गांव के लोगों ने अशोक की लाश को सड़क पर रख जाम लगा दिया। मांग उठाई कि उसके परिवार को मुआवजा मिले, परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी दी जाए, ताकि अशोक का घर चल सके।
उत्तर प्रदेश के अमरोहा जिले में रहने वाले अशोक और लोकेश, उन 12 लोगों में शामिल हैं, जिनकी जिंदगियां दिल्ली कार ब्लास्ट में खत्म हो गई। सोमवार को लोकश सर गंगाराम हॉस्पिटल में भर्ती अपने एक रिश्तेदार से मिलने के लिए दिल्ली आए थे। हाल-चाल लेने के बाद, शाम को लोकेश वापस अमरोहा के लिए निकलने ही वाले थे, तो सोचा कि क्यों ना एक बार अशोक से बात कर लूं। दिल्ली के वजीराबाद में रह रहे अशोक डीटीसी बस में कंडक्टर थे। दोस्त का फोन आया तो रहा ना गया और कहा कि वो उसे लेने मेट्रो स्टेशन आ रहे हैं। ज्यादा कुछ नहीं, तो चंद मिनट साथ बैठकर एक-एक कप चाय ही पी लेंगे।
कुछ ही देर में अशोक लाल किला मेट्रो स्टेशन पहुंच गए। मुलाकात हुई, एक-दूसरे का हाल-चाल लिया और अशोक की बाइक पर बैठकर दोनों वजीराबाद के लिए निकले पड़े। काम-धंधे की बातें, बच्चों और गांव-गलियों के किस्से शुरू होते, उससे पहले ही एक तेज धमाका हुआ और दोनों की ये मुलाकात 'मौत की मुलाकात' बन गई। कार धमाके की चपेट में आए अशोक और लोकेश ने मौके पर ही दम तोड़ दिया। गांव में दोनों की मौत की खबर पहुंची तो कोहराम मच गया।
परिजन बताते हैं कि अशोक और लोकेश ने महीनों से एक-दूसरे को नहीं देखा था, लेकिन उनकी दोस्ती मुलाकात की मोहताज नहीं थी। अमरोहा के हसनपुर की गलियों से निकलकर, दिल्ली की भागदौड़ भरी जिंदगी तक... वे कभी-कभार फोन करके, कभी त्योहारों की बधाई देकर, तो कभी महज मिलने का वादा करके ही, एक दूसरे संपर्क में रहे। मंगलवार दोपहर को सफेद कपड़े में लिपटी, दोनों की लाशें अमरोहा में उन्हीं गलियों से वापस घर पहुंचीं, जिन गलियों में दोनों अक्सर मिला करते थे।
हाथ पर ओम का टैटू देखकर पहचानाअशोक का परिवार हसनपुर के मंगरौला गांव में रहता है। मायूसी और सदमे से भरे माहौल में, अशोक की पत्नी सोनम अपने तीन साल के बेटे आरंभ को गोद में लिए अर्थी के पास बैठी थीं। दोनों बेटियां, 8 साल की आरोही और 5 साल की काव्या भी उनके पास खड़ी थीं। अशोक की 85 वर्षीय मां सोमवती दिल की मरीज हैं। आंसुओं से भरी आंखों से उन्होंने बताया कि दिवाली पर ही अशोक घर आए थे। उनके भाई सोमपाल सिंह ने कहा, 'वो कहकर गया था कि जल्द ही फिर आएगा। उसने अपना वादा तो निभाया, लेकिन वो इस तरह लौटेगा, ये नहीं सोचा था।'
बड़ी मुश्किल से अपने आंसुओं को रोकते हुए अशोक के एक रिश्तेदार विजय ने उस मंजर को बयां करते हुए बताया, 'उसने डीटीसी की अपनी वर्दी पहन रखी थी और उसके हाथ पर ओम का टैटू था। इन्हीं दोनों से हमने अशोक की लाश को पहचाना। परिवार का पेट पालने वाले अशोक अकेले थे, अब घर चलाने वाला कोई नहीं बचा। इस धमाके ने पूरे परिवार की जिंदगी में अंधेरा कर दिया।'
उसने कहा, बस दोस्त से मिल लेता हूं...हसनपुर में ही कुछ दूरी पर लोकेश के घर का आंगन रिश्तेदारों से भरा हुआ था। सबके पास उसकी कुछ ना कुछ यादें हैं। लोकेश ने अकेले ही अपने तीन बच्चों को पाला था। एक बेटा सौरभ देहरादून में वैज्ञानिक है, दूसरा बेटा गौरव इलेक्ट्रिकल इंजीनियर और बेटी दिव्या की शादी हो चुकी है। उस शाम लोकेश को मेट्रो स्टेशन के पास छोड़ने वाले उनके चचेरे भाई वागीश बताते हैं, 'दोस्ती की गहराई को उसने कभी कम नहीं होने दिया, मैंने कहा था उससे कि काफी देर हो रही है, लेकिन वो नहीं माना। उसने कहा कि बस मिल लेता हूं और कुछ ही घंटों बाद दिल्ली पुलिस का फोन आ गया।
अगले दिन जब अशोक और लोकेश की लाशों को लिए, उनके ताबूत अमरोहा पहुंचे तो गांव का शोक विरोध में तब्दील हो गया। गांव के लोगों ने अशोक की लाश को सड़क पर रख जाम लगा दिया। मांग उठाई कि उसके परिवार को मुआवजा मिले, परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी दी जाए, ताकि अशोक का घर चल सके।
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