नई दिल्लीः जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) छात्रसंघ चुनाव 2025 में इस बार मुकाबला बेहद रोमांचक रहा। लेफ्ट यूनिटी की ओर से डेमोक्रेटिक स्टूडेंट्स फेडरेशन (DSF) के उम्मीदवार सुनील यादव ने महासचिव पद पर जीत हासिल की। उन्हें 1,915 वोट मिले, जबकि एबीवीपी के राजेश्वर कांत दुबे को 1,841 वोट मिले। यानी सिर्फ 74 वोटों का अंतर रहा। यह नतीजा कैंपस में इस साल के सबसे कड़े चुनावी संघर्षों में से एक माना जा रहा है।
कौन हैं सुनील यादव?
सुनील यादव यूरोपियन स्टडीज सेंटर के पीएचडी स्कॉलर हैं। उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले के बेदीपुर गांव से ताल्लुक रखने वाले सुनील एक पहली पीढ़ी के ग्रेजुएट हैं। छोटे कस्बे से निकलकर जेएनयू की राजनीति में छा जाना उनकी सक्रियता, उनकी मेहनत और लगन की सुंदर कहानी है। उनके पिता बागपत के एक सरकारी स्कूल में ग्रुप डी कर्मचारी हैं और मां गृहिणी हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय से 2021 में ग्रेजुएशन करने के बाद सुनील ने जेएनयू में मास्टर किया और जल्द ही छात्र आंदोलनों में सक्रिय हो गए।
छात्र राजनीति में बढ़ता कद
2022 में सुनील यादव स्टूडेंट-फैकल्टी कोऑर्डिनेटर (SFC) चुने गए और ऑफलाइन क्लासेज दोबारा शुरू कराने की मांग को लेकर हुए आंदोलनों में अहम भूमिका निभाई। उन्होंने कोविड-19 के बाद हॉस्टल आवंटन और कैंपस खोलने को लेकर भी छात्रों की आवाज बुलंद की। 2024 में उन्होंने स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज़ (SIS) के छात्रों के लिए वैकल्पिक पाठ्यक्रमों में लचीलापन लाने की मांग का नेतृत्व किया और SIS डीन कार्यालय के बाहर हुए भूख हड़ताल आंदोलन का हिस्सा बने।
2025 में वे SIS से काउंसलर चुने गए और फिर इंटर-हॉल एडमिनिस्ट्रेशन (IHA) के कन्वीनर बने। इस भूमिका में उन्होंने फीस वृद्धि के विरोध में प्रदर्शन किया और जेएनयू प्रवेश परीक्षा (JNUEE) की बहाली, हॉस्टल बेदखली आदेशों की वापसी और छात्रों पर अनुशासनात्मक कार्रवाई रद्द करने की मांगों के समर्थन में अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल की।
जेएनयू राजनीति में नई पहचान
फिलहाल, सुनील यादव डेमोक्रेटिक स्टूडेंट्स फेडरेशन (DSF) के अध्यक्ष हैं। उनकी जीत डीएसएफ के लिए एक बड़ी उपलब्धि मानी जा रही है। लगातार सक्रियता और छात्रों से मजबूत जुड़ाव ने उन्हें जेएनयू की राजनीति में एक प्रभावशाली चेहरा बना दिया है। बरहाल, इस बार जेएनयू चुनाव में 67% मतदान हुआ, जो पिछले साल के 70% से थोड़ा कम है, लेकिन फिर भी कैंपस की लोकतांत्रिक परंपरा को एक बार फिर मजबूती से सामने लाया।
कौन हैं सुनील यादव?
सुनील यादव यूरोपियन स्टडीज सेंटर के पीएचडी स्कॉलर हैं। उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले के बेदीपुर गांव से ताल्लुक रखने वाले सुनील एक पहली पीढ़ी के ग्रेजुएट हैं। छोटे कस्बे से निकलकर जेएनयू की राजनीति में छा जाना उनकी सक्रियता, उनकी मेहनत और लगन की सुंदर कहानी है। उनके पिता बागपत के एक सरकारी स्कूल में ग्रुप डी कर्मचारी हैं और मां गृहिणी हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय से 2021 में ग्रेजुएशन करने के बाद सुनील ने जेएनयू में मास्टर किया और जल्द ही छात्र आंदोलनों में सक्रिय हो गए।
छात्र राजनीति में बढ़ता कद
2022 में सुनील यादव स्टूडेंट-फैकल्टी कोऑर्डिनेटर (SFC) चुने गए और ऑफलाइन क्लासेज दोबारा शुरू कराने की मांग को लेकर हुए आंदोलनों में अहम भूमिका निभाई। उन्होंने कोविड-19 के बाद हॉस्टल आवंटन और कैंपस खोलने को लेकर भी छात्रों की आवाज बुलंद की। 2024 में उन्होंने स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज़ (SIS) के छात्रों के लिए वैकल्पिक पाठ्यक्रमों में लचीलापन लाने की मांग का नेतृत्व किया और SIS डीन कार्यालय के बाहर हुए भूख हड़ताल आंदोलन का हिस्सा बने।
2025 में वे SIS से काउंसलर चुने गए और फिर इंटर-हॉल एडमिनिस्ट्रेशन (IHA) के कन्वीनर बने। इस भूमिका में उन्होंने फीस वृद्धि के विरोध में प्रदर्शन किया और जेएनयू प्रवेश परीक्षा (JNUEE) की बहाली, हॉस्टल बेदखली आदेशों की वापसी और छात्रों पर अनुशासनात्मक कार्रवाई रद्द करने की मांगों के समर्थन में अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल की।
जेएनयू राजनीति में नई पहचान
फिलहाल, सुनील यादव डेमोक्रेटिक स्टूडेंट्स फेडरेशन (DSF) के अध्यक्ष हैं। उनकी जीत डीएसएफ के लिए एक बड़ी उपलब्धि मानी जा रही है। लगातार सक्रियता और छात्रों से मजबूत जुड़ाव ने उन्हें जेएनयू की राजनीति में एक प्रभावशाली चेहरा बना दिया है। बरहाल, इस बार जेएनयू चुनाव में 67% मतदान हुआ, जो पिछले साल के 70% से थोड़ा कम है, लेकिन फिर भी कैंपस की लोकतांत्रिक परंपरा को एक बार फिर मजबूती से सामने लाया।
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