पटना: बिहार में किस पार्टी ने आबादी के हिसाब से मुस्लिम समुदाय को टिकट दिया है? AIMIM के 25 में से 23 उम्मीदवार मुस्लिम हैं। सबसे अधिक असदुद्दीन ओवैसी ने ही मुसलमानों को टिकट दिया है। कांग्रेस 61 सीटों पर चुनाव लड़ रही है और उसने 10 मुस्लिम उम्मीदवार उतारे हैं। ये आंकड़ा 18 फीसदी के आसपास है। जन सुराज पार्टी ने पहली दो सूची में घोषित 116 में से 21 मुस्लिम प्रत्याशी दिए। प्रशांत किशोर ने भी आबादी के हिसाब से मुस्लिमों को टिकट दिया। राजद को MY समीकरण पर गुमान है, वो एक तरह से मुस्लिम वोटों पर अपना एकाधिकार समझती है। राजद 141 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। आबादी के हिसाब से उसे कम से कम 25 मुस्लिम प्रत्याशी देने चाहिए थे। लेकिन उसने सिर्फ 18 मुसलमानों को टिकट दिए।
आबादी के हिसाब से 44 विधायक होने चाहिए थेबिहार में मुसलमानों की आबादी 17 फीसदी से अधिक है। बिहार विधानसभा के कुल सदस्यों की संख्या 243 है। अगर आबादी के हिसाब से देखा जाए तो मुस्लिम विधायकों की संख्या 44 के आसपास होनी चाहिए। लेकिन आज तक मुस्लिम विधायकों की संख्या 44 तक नहीं पहुंची। 1985 में सबसे अधिक 34 मुस्लिम विधायक चुने गए थे। लेकिन उस समय संयुक्त बिहार की 324 सीटों पर चुनाव हुआ था। 2020 में कुल 19 मुस्लिम विधायक चुने गए थे। यानी मुसलमानों को उनकी आबादी के हिसाब से उचित राजनीतिक भागीदारी नहीं मिल रही है।
सिर्फ भाजपा को हराने के नाम पर वोट करते हैं मुस्लिमबिहार विधानसभा चुनाव में अब तक मुस्लिम वोटर सिर्फ भाजपा को हराने के लिए वोट करते आए हैं। वे हर सीट पर ये देखते हैं कि कौन-सा उम्मीदवार भाजपा को हराने की स्थिति में है, उसको वोट कर देते हैं। उनको अपनी तरक्की से अधिक भाजपा की हार जरूरी लगती है। इसी सोच के कारण मुस्लिम एक वोट बैंक बन कर रह गए हैं। इसलिए गैर-भाजपा दलों ने भाजपा का डर दिखा सिर्फ इनका इस्तेमाल ही किया, उचित भागीदारी नहीं दी।
यादव 14% मुस्लिम 18% किसे बनना चाहिए CM?AIMIM के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी मुसलमानों के इसी दर्द को भुनाना चाहते हैं। उनका कहना है कि बिहार में जिस तरह हर जाति का अपना नेता है, उसी तरह यहां मुसलमानों का भी अपना नेता होना चाहिए। मुसलमानों का अपना नेता होगा तो कोई दूसरा दल उनको ठग नहीं सकेगा। अपना नेता, अपनी पार्टी होगी तो भाजपा के खिलाफ वोट देने की मजबूरी भी नहीं होगी। तभी मुसलमान अपनी तरक्की की बात सोच सकते हैं। ओवैसी का कहना है, अगर 14 फीसदी यादव पर तेजस्वी सीएम बनने का सपना देख सकते हैं तो 18 फीसदी वाले मुसलमान ऐसा क्यों नहीं सोच सकते? लेकिन इसके लिए जरूरी है कि वे एक छतरी के नीचे आएं।
बिहार चुनाव में NDA से सिर्फ 5 मुस्लिम उम्मीदवारएनडीए से सिर्फ 5 मुस्लिम उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं। चार जदयू से और एक लोजपा (आर) से। नीतीश कुमार ने सिर्फ 4 मुस्लिम उम्मीदवार ही क्यों उतारे? इस सवाल का उत्तर जानने के लिए थोड़ा पीछे जाना होगा। नीतीश कुमार ने अपनी धर्मनिरपेक्ष छवि कायम रखने के लिए भाजपा से झगड़ा तक किया था। 2013 में जब नरेंद्र मोदी को भाजपा के भावी पीएम प्रत्याशी के रूप में आगे बढ़ाया जा रहा था तो नीतीश कुमार भाजपा से नाराज हो गए थे। उन्होंने इसके विरोध में भाजपा से गठबंधन तोड़ कर साहस का परिचय दिया था। लेकिन, इसके बाद भी मुसलमान नीतीश कुमार के पक्ष में नहीं आए। 2014 के लोकसभा चुनाव में नीतीश कुमार की करारी हार हुई और सिर्फ दो सांसद ही चुने जा सके।
नीतीश ने 4 ही मुस्लिम उम्मीदवार क्यों उतारे?2020 में नीतीश ने फिर मुस्लिम वोटरों पर भरोसा किया। कुल 11 मुस्लिम प्रत्याशियों को मैदान में उतारा। जदयू के एक भी मुस्लिम उम्मीदवार जीत नहीं सका। नीतीश कुमार को लगातार दो बड़े झटके लगे। मुस्लिम समुदाय के लिए नीतीश कुमार ने बहत काम किए। लेकिन, उनके काम का इनाम वोट के रूप में नहीं मिला। तब उन्हें लगा कि जिस मुस्लिम हितों के लिए वे नरेंद्र मोदी से लड़ रहे हैं, दरअसल उसकी कोई अहमियत नहीं है। इसके चक्कर में भाजपा से भी संबंध खराब हो रहा है। तब निराश जदयू ने सीट के समीकरण के हिसाब से जहां ज्यादा जरूरी था, वहीं मुस्लिम उम्मीदवार दिए।
आबादी के हिसाब से 44 विधायक होने चाहिए थेबिहार में मुसलमानों की आबादी 17 फीसदी से अधिक है। बिहार विधानसभा के कुल सदस्यों की संख्या 243 है। अगर आबादी के हिसाब से देखा जाए तो मुस्लिम विधायकों की संख्या 44 के आसपास होनी चाहिए। लेकिन आज तक मुस्लिम विधायकों की संख्या 44 तक नहीं पहुंची। 1985 में सबसे अधिक 34 मुस्लिम विधायक चुने गए थे। लेकिन उस समय संयुक्त बिहार की 324 सीटों पर चुनाव हुआ था। 2020 में कुल 19 मुस्लिम विधायक चुने गए थे। यानी मुसलमानों को उनकी आबादी के हिसाब से उचित राजनीतिक भागीदारी नहीं मिल रही है।
सिर्फ भाजपा को हराने के नाम पर वोट करते हैं मुस्लिमबिहार विधानसभा चुनाव में अब तक मुस्लिम वोटर सिर्फ भाजपा को हराने के लिए वोट करते आए हैं। वे हर सीट पर ये देखते हैं कि कौन-सा उम्मीदवार भाजपा को हराने की स्थिति में है, उसको वोट कर देते हैं। उनको अपनी तरक्की से अधिक भाजपा की हार जरूरी लगती है। इसी सोच के कारण मुस्लिम एक वोट बैंक बन कर रह गए हैं। इसलिए गैर-भाजपा दलों ने भाजपा का डर दिखा सिर्फ इनका इस्तेमाल ही किया, उचित भागीदारी नहीं दी।
यादव 14% मुस्लिम 18% किसे बनना चाहिए CM?AIMIM के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी मुसलमानों के इसी दर्द को भुनाना चाहते हैं। उनका कहना है कि बिहार में जिस तरह हर जाति का अपना नेता है, उसी तरह यहां मुसलमानों का भी अपना नेता होना चाहिए। मुसलमानों का अपना नेता होगा तो कोई दूसरा दल उनको ठग नहीं सकेगा। अपना नेता, अपनी पार्टी होगी तो भाजपा के खिलाफ वोट देने की मजबूरी भी नहीं होगी। तभी मुसलमान अपनी तरक्की की बात सोच सकते हैं। ओवैसी का कहना है, अगर 14 फीसदी यादव पर तेजस्वी सीएम बनने का सपना देख सकते हैं तो 18 फीसदी वाले मुसलमान ऐसा क्यों नहीं सोच सकते? लेकिन इसके लिए जरूरी है कि वे एक छतरी के नीचे आएं।
बिहार चुनाव में NDA से सिर्फ 5 मुस्लिम उम्मीदवारएनडीए से सिर्फ 5 मुस्लिम उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं। चार जदयू से और एक लोजपा (आर) से। नीतीश कुमार ने सिर्फ 4 मुस्लिम उम्मीदवार ही क्यों उतारे? इस सवाल का उत्तर जानने के लिए थोड़ा पीछे जाना होगा। नीतीश कुमार ने अपनी धर्मनिरपेक्ष छवि कायम रखने के लिए भाजपा से झगड़ा तक किया था। 2013 में जब नरेंद्र मोदी को भाजपा के भावी पीएम प्रत्याशी के रूप में आगे बढ़ाया जा रहा था तो नीतीश कुमार भाजपा से नाराज हो गए थे। उन्होंने इसके विरोध में भाजपा से गठबंधन तोड़ कर साहस का परिचय दिया था। लेकिन, इसके बाद भी मुसलमान नीतीश कुमार के पक्ष में नहीं आए। 2014 के लोकसभा चुनाव में नीतीश कुमार की करारी हार हुई और सिर्फ दो सांसद ही चुने जा सके।
नीतीश ने 4 ही मुस्लिम उम्मीदवार क्यों उतारे?2020 में नीतीश ने फिर मुस्लिम वोटरों पर भरोसा किया। कुल 11 मुस्लिम प्रत्याशियों को मैदान में उतारा। जदयू के एक भी मुस्लिम उम्मीदवार जीत नहीं सका। नीतीश कुमार को लगातार दो बड़े झटके लगे। मुस्लिम समुदाय के लिए नीतीश कुमार ने बहत काम किए। लेकिन, उनके काम का इनाम वोट के रूप में नहीं मिला। तब उन्हें लगा कि जिस मुस्लिम हितों के लिए वे नरेंद्र मोदी से लड़ रहे हैं, दरअसल उसकी कोई अहमियत नहीं है। इसके चक्कर में भाजपा से भी संबंध खराब हो रहा है। तब निराश जदयू ने सीट के समीकरण के हिसाब से जहां ज्यादा जरूरी था, वहीं मुस्लिम उम्मीदवार दिए।
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