काबुल: तालिबान के विदेश मंत्री अमीर खान मुत्तकी इस महीने की शुरुआत में नई दिल्ली की यात्रा ने भारत और अफगानिस्तान के संबंधों में नया अध्याय शुरू किया है। मुत्तकी की यात्रा दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों में एक महत्वपूर्ण बदलाव का प्रतीक है। मुत्तकी के दौरे पर भारत ने काबुल में पूर्ण राजनयिक मिशन को बहाल करने की घोषणा की। एक पखवाड़े के भीतर ही काबुल में दूतावास प्रमुख की घोषणा करके नई दिल्ली ने अफगानिस्तान में औपचारिक वापसी कर ली है। इसने अफगान लोगों के साथ संबंधों को फिर से जोड़ दिया है।
मुत्तकी की यात्रा को महत्वपूर्ण बनाने वाली बात यह है कि अफगानिस्तान को लेकर नई दिल्ली की नीति में बदलाव ऐसे समय में हुआ है, जब तालिबान और पाकिस्तान के बीच संबंधों में भारी तनाव है। हाल ही में पाकिस्तान सेना और तालिबान सैनिकों के बीच कई दिनों तक हिंसक झड़प हुई थी। मंत्राय इंस्टीट्यूट फॉर स्ट्रैटेजिक स्टडीज की संस्थापक डॉ. शांति मैरिएट डिसूजा ने फर्स्ट पोस्ट से बातचीत में कहा कि तालिबान के विदेश मंत्री की भारत यात्रा निश्चित रूप से तालिबान के साथ जुड़ाव के स्तर को उन्नत करने की दृष्टि से रणनीतिक बदलाव है।
दिलचस्प बात यह है कि यह बदलाव रूस के तालिबान को मान्यता देने, ट्रंप के बगराम एयरबेस पर दावा करने, अफगानिस्तान में चीन की बढ़ती मौजूदगी और अफगानिस्तान-पाकिस्तान संबंधों में गिरावट के बाद हुआ है। उन्होंने कहा कि यह स्थिति दोनों देशों के लिए मिलकर काम करने का एक महत्वपूर्ण अवसर प्रदान करती है।
भारत के लिए अफगानिस्तान जरूरी
इससे भी महत्वपूर्ण है कि भारत को मध्य एशिया से संपर्क के लिए अफगानिस्तान बहुत महत्वपूर्ण है। वहीं, लैंड-लॉक्ड अफगानिस्तान को भारत के बनाए चाबहार बंदरगाह के जरिए समुद्र में पहुंच मिलती है। हालांकि, ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंधों और बगराम पर ट्रंप के दावों ने स्थिति को और जटिल बना दिया है। डॉ. डिसूजा ने भारत और अफगानिस्तान के ऐतिहासिक संबंधों का जिक्र किया और कहा कि फिलहाल तालिबान के साथ काम करना होगा और जरूरतमंद अफगानों की मदद के लिए विभिन्न स्तरों पर उनसे जुड़ना होगा। धीरे-धीरे बाहरी दुनिया के साथ उनके संपर्क बढ़ने के साथ तालिबान के भीतर एक सामाजिककरण की प्रक्रिया शुरू हो सकती है। इनमें महिला अधिकारों का मुद्दा प्रमुख है।
लड़कियों की शिक्षा और हाल ही में इंटरनेट पर प्रतिबंध जैसे मुद्दों पर उनके बीच मतभेद हैं। ये मतभेद काबुल और कंधार शूरा के बीच काफी साफ दिखाई देते हैं। ऐसे में मुख्यधारा में शामिल होने की गुंजाइश बढ़ाने के लिए उनके साथ जुड़ना और बातचीत करना उपयोगी होगा। यह भारत-अफगानिस्तान संबंधों को सामान्य बनाने के लिहाज से भी अच्छा होगा।
तालिबान 2.0 पहले से अधिक व्यवहारिक
फर्स्ट पोस्ट से बात करते हुए डिसूजा ने तालिबान 2.0 और 1990 के दशक वाले तालिबान 1.0 के नजरिए में अंतर का जिक्र किया और कहा कि आज तालिबान कहीं अधिक व्यवहारिक हैं। डिसूजा ने उम्मीद जताई कि मुत्तकी की दिल्ली यात्रा से दोनों देशों के बीच संबंधों में सुधार होगा। उन्होंने कहा कि उम्मीद है कि इससे अफगानों को चिकित्सा, शिक्षा और व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए अधिक वीजा दिए जाएंगे।
मुत्तकी की यात्रा को महत्वपूर्ण बनाने वाली बात यह है कि अफगानिस्तान को लेकर नई दिल्ली की नीति में बदलाव ऐसे समय में हुआ है, जब तालिबान और पाकिस्तान के बीच संबंधों में भारी तनाव है। हाल ही में पाकिस्तान सेना और तालिबान सैनिकों के बीच कई दिनों तक हिंसक झड़प हुई थी। मंत्राय इंस्टीट्यूट फॉर स्ट्रैटेजिक स्टडीज की संस्थापक डॉ. शांति मैरिएट डिसूजा ने फर्स्ट पोस्ट से बातचीत में कहा कि तालिबान के विदेश मंत्री की भारत यात्रा निश्चित रूप से तालिबान के साथ जुड़ाव के स्तर को उन्नत करने की दृष्टि से रणनीतिक बदलाव है।
दिलचस्प बात यह है कि यह बदलाव रूस के तालिबान को मान्यता देने, ट्रंप के बगराम एयरबेस पर दावा करने, अफगानिस्तान में चीन की बढ़ती मौजूदगी और अफगानिस्तान-पाकिस्तान संबंधों में गिरावट के बाद हुआ है। उन्होंने कहा कि यह स्थिति दोनों देशों के लिए मिलकर काम करने का एक महत्वपूर्ण अवसर प्रदान करती है।
भारत के लिए अफगानिस्तान जरूरी
इससे भी महत्वपूर्ण है कि भारत को मध्य एशिया से संपर्क के लिए अफगानिस्तान बहुत महत्वपूर्ण है। वहीं, लैंड-लॉक्ड अफगानिस्तान को भारत के बनाए चाबहार बंदरगाह के जरिए समुद्र में पहुंच मिलती है। हालांकि, ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंधों और बगराम पर ट्रंप के दावों ने स्थिति को और जटिल बना दिया है। डॉ. डिसूजा ने भारत और अफगानिस्तान के ऐतिहासिक संबंधों का जिक्र किया और कहा कि फिलहाल तालिबान के साथ काम करना होगा और जरूरतमंद अफगानों की मदद के लिए विभिन्न स्तरों पर उनसे जुड़ना होगा। धीरे-धीरे बाहरी दुनिया के साथ उनके संपर्क बढ़ने के साथ तालिबान के भीतर एक सामाजिककरण की प्रक्रिया शुरू हो सकती है। इनमें महिला अधिकारों का मुद्दा प्रमुख है।
लड़कियों की शिक्षा और हाल ही में इंटरनेट पर प्रतिबंध जैसे मुद्दों पर उनके बीच मतभेद हैं। ये मतभेद काबुल और कंधार शूरा के बीच काफी साफ दिखाई देते हैं। ऐसे में मुख्यधारा में शामिल होने की गुंजाइश बढ़ाने के लिए उनके साथ जुड़ना और बातचीत करना उपयोगी होगा। यह भारत-अफगानिस्तान संबंधों को सामान्य बनाने के लिहाज से भी अच्छा होगा।
तालिबान 2.0 पहले से अधिक व्यवहारिक
फर्स्ट पोस्ट से बात करते हुए डिसूजा ने तालिबान 2.0 और 1990 के दशक वाले तालिबान 1.0 के नजरिए में अंतर का जिक्र किया और कहा कि आज तालिबान कहीं अधिक व्यवहारिक हैं। डिसूजा ने उम्मीद जताई कि मुत्तकी की दिल्ली यात्रा से दोनों देशों के बीच संबंधों में सुधार होगा। उन्होंने कहा कि उम्मीद है कि इससे अफगानों को चिकित्सा, शिक्षा और व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए अधिक वीजा दिए जाएंगे।
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