जबलपुर, 3 मई . एक प्रकरण में तहसीलदार और पटवारी पर कार्रवाई होने के बाद पूरे जिले के तहसीलदारों में भारी असंतोष है. इस मुद्दे को लेकर तहसीलदारों ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की और साफ शब्दों में कहा कि इस पूरे मामले की जांच में निष्पक्षता नहीं बरती गई. अधिकारियों ने आरोप लगाया कि EOW ने आधे-अधूरे तथ्यों के आधार पर तहसीलदार और पटवारी को दोषी ठहराने की कोशिश की, जबकि असली गड़बड़ी करने वाला कोई और था. उनका कहना है कि जो अधिकारी गड़बड़ी को समय रहते पकड़ ले और उसे रोकने की कोशिश करे,अगर उसी को आरोपी बना दिया जाए,तो यह न्याय के बिल्कुल खिलाफ है.
तहसीलदारों का कहना है कि यह मामला न्याय की मूल भावना के बिल्कुल उलट है. उनके अनुसार किसी मामले में गलती को पकड़ने वाला और उसे रोकने वाला अधिकारी अगर खुद कटघरे में खड़ा कर दिया जाए, तो यह सरकारी सेवा में काम कर रहे ईमानदार अधिकारियों के मनोबल को तोड़ने जैसा है. इससे साफ संदेश जाएगा कि किसी भी गड़बड़ी को रोकने की कोशिश करना ही सबसे बड़ा जोखिम बन सकता है. तहसीलदारों ने कहा कि इस तरह की कार्रवाई से अच्छे अधिकारी डरे रहेंगे और नतीजतन जनता के कामों में देरी और अड़चनें बढ़ेंगी. जिले के तहसीलदारों ने कहा कि वे जांच से नहीं घबराते, लेकिन उन्हें यह जरूर उम्मीद है कि जांच निष्पक्ष और तथ्यों पर आधारित होनी चाहिए. इस प्रकरण में जिस तरह की बातें जांच रिपोर्ट में लिखी गई हैं, उनसे लगता है कि जांचकर्ताओं को राजस्व संबंधी दस्तावेजों की सही जानकारी नहीं थी.
प्रेस कॉन्फ्रेंस में एक और अहम बात सामने आई कि इस केस में जिस फर्जी मृत्यु प्रमाणपत्र के आधार पर नामांतरण हुआ था, उसे सबसे पहले पटवारी ने ही पहचाना था. पटवारी को जब इस प्रमाणपत्र पर शक हुआ तो उसने इसकी सूचना तहसीलदार को दी. तहसीलदार ने बिना किसी शिकायत का इंतजार किए, स्वयं नगर निगम से प्रमाणपत्र की जांच करवाई. नगर निगम ने बताया कि यह प्रमाणपत्र असली नहीं है, यानी फर्जी तरीके से बनाया गया था.
तहसीलदार ने इस रिपोर्ट को मिलते ही उसी दिन नामांतरण को रद्द कर दिया. यह दर्शाता है कि अधिकारियों ने गलती होने के बाद तुरंत और जिम्मेदारी के साथ कार्रवाई की. उन्होंने कोई अपराध नहीं किया बल्कि गड़बड़ी को रोका. तहसीलदारों ने मांग की है कि इस मामले की दोबारा गहराई से जांच की जाए ताकि असली दोषी सामने आए और ईमानदार अधिकारियों को बेवजह बदनाम न किया जाए.
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/ विलोक पाठक
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