मंडी, 13 अगस्त (Udaipur Kiran) । ऐतिहासिक नगरी पांगणा-सुुकेत में श्रीमद्भागवत कथा सुनाते हुए पंडित शशांक ने कहा कि संगीत सनातन, शाश्वत, सुंदर और सत्य है। संगीतमय भागवत की साधना बड़ी कठोर है। यह एक तपस्या है। संगीत की परंपरा सभ्यता के आदिकाल से रही है। उपनिषदों, महाभारत में यक्ष की तेजस्विता का उल्लेख है।
उन्हाेने कहा कि आज की कथा मे श्री कृष्ण की अनोखी बाल लीलाओं को सुनकर श्रद्धालु भक्तिमय हो गए। हरि कथा अनंत है। एक बार क्रम शुरु हुआ तो इसका अंत नही है। शशांक पांगणा-सुुकेत-मंडी ही नहीं बल्कि हिमाचल व भारत की परंपराओं, कला और आस्था को आत्मसात कर, अपनी वाणी में उस दिव्यता को प्रकट कर रहे हैं, जो युगों तक लोगों को मार्ग दिखाती रही है। संस्कृति और कलामयी नगरी पांगणा-सुुकेत के हृदय स्थल में, जहां हर गली-नुक्कड़ पर महामाया, शिव, लक्ष्मी नारायण, राधा-कृष्ण, नृसिंह, सूर्यदेव, मां सरस्वती व अनेक नागदेव तथा देवगणों की की लीलाओं की गूंज से पुलकित होती है, वहीं एक भागवत वक्ता का जीवन भी उस संगीत की तरह होता है जो श्रोताओं के हृदय को छू जाता है।
पंडित शशांक ने कहा कि पांगणा केवल एक तीर्थ नहीं, बल्कि जीवंत संस्कृति का धरोहर गांव है, जहां शब्द केवल बोले नहीं जाते—जीए जाते हैं। ऐसे स्थान पर सुकेत संस्थापक राजा वीरसेन के साथ बंगाल से आए ब्राह्मण नागेंद्र के परिवार की पीढ़ी मे प्रकांड पंडित सिद्धुराम के आयुर्वेदीय प्रणाली के अनुसार चिकित्सा करने वाले चमन लाल व माता बबीता के पुत्र शशांक कृष्ण कौशल अपने पुश्तैनी गांव पांगणा-सुुकेत मे तीसरी बार भागवत वक्ता के रूप मे अपने श्रीमुख से पुराण कथा का गायन कर ही रहे है।
शशांक का जन्म सांस्कृतिक नगरी पांगणा के राजपुरोहित परिवार में हुआ, जहां की धर्म व संस्कृति के संस्कारों में पोषित होकर उनका भगवदानुरागी व्यक्तित्व विकसित हुआ है। वे भागवत महापुराण कथा में भगवान की दिव्य लीलाओं के लालित्य को आज की सास्कृतिक-सामाजिक व्यवस्था के समकक्ष विवेचन कर आदर्श जीवन का संदेश देते हैं। शशांक भागवत कथा के सुमधुर रूपकों के माध्यम से यहां के देव समाज में पनपते पाखंड और अंहकार की भर्त्सना कर धार्मिक स्थलों को ज्ञान,भक्ति व कर्म योग के आधारभूत गुणों से सुशोभित करने की सीख देते हैं। उनके उद्बोदन में देव परम्पराओं के मौलिक स्वरूप के अनुशील का भाव सन्निहित रहता है।
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(Udaipur Kiran) / मुरारी शर्मा
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